तेलंगाना में हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी के निकट स्थित 400 एकड़ वन भूमि की कटाई के खिलाफ पूरे देश में विरोध की लहर देखने को मिल रही है। इसी क्रम में राजस्थान के जयपुर जिले के चोमू थाना मोड़ पर बड़ी संख्या में लोग इकट्ठा हुए और शांतिपूर्वक धरना प्रदर्शन कर तेलंगाना सरकार के खिलाफ विरोध दर्ज कराया।

जय जंतु फाउंडेशन के नेतृत्व में हुआ विरोध प्रदर्शन
यह प्रदर्शन जय जंतु फाउंडेशन के बैनर तले आयोजित किया गया, जिसमें एमबीएस फाउंडेशन, श्री श्याम गौ सेवा समिति, और गौ रक्षा दल जैसे संगठनों ने भी सक्रिय भागीदारी की। प्रदर्शन में युवाओं से लेकर महिलाएं तक बड़ी संख्या में मौजूद रहीं। प्रदर्शनकारियों का कहना है कि वन्य जीवों की रक्षा और पर्यावरण संतुलन बनाए रखना मानवता की सबसे बड़ी जिम्मेदारी है।
“विकास नहीं, यह विनाश है” – प्रदर्शनकारियों की चेतावनी
प्रदर्शन के दौरान लोगों ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि—
“ये विकास के नाम पर विनाश किया जा रहा है। जो जंगल कट रहे हैं, वो सिर्फ पेड़ नहीं, बल्कि सैकड़ों जीवों का घर हैं।”
मेहुल अग्रवाल ने कहा कि “राजस्थान की धरती पर अमृता देवी जैसी वीरांगना ने पेड़ों की रक्षा के लिए जान न्यौछावर की थी। आज भी हम उसी परंपरा को निभा रहे हैं।”
राष्ट्रीय पक्षी मोर तक हो रहा है बेघर
प्रदर्शनकारियों ने सोशल मीडिया पर वायरल हो रही उन वीडियो का हवाला दिया जिसमें तेलंगाना में मोर और अन्य वन्य जीवों को रोते-बिलखते हुए देखा गया है। ये दृश्य लोगों के हृदय को झकझोरने वाले हैं और इस बात का प्रमाण हैं कि वन्य जीवन संकट में है।
“जब-जब प्रकृति से खिलवाड़ हुआ है, तब-तब आई है आपदा”
एक प्रदर्शनकारी ने कहा:
“आपने देखा कि हाल ही में कई स्थानों पर भूकंप आए और हजारों लोगों की जान गई। यह सब प्रकृति के साथ किए गए खिलवाड़ का नतीजा है। कोरोना जैसी महामारी भी इसका ही उदाहरण है। जब हम प्रकृति को नुकसान पहुंचाते हैं, तब वो अपने तरीके से जवाब देती है।”
ग्लोबल वार्मिंग और बढ़ती गर्मी बनी चिंता का विषय
प्रदर्शन स्थल पर मौजूद लोगों ने कहा कि अप्रैल महीने में भीषण गर्मी इस बात का संकेत है कि पर्यावरण में भारी असंतुलन पैदा हो चुका है। एक वक्त था जब इस मौसम में हल्की ठंड होती थी, लेकिन अब सूरज की तपिश इंसान को झुलसा रही है।
“सिर साठे रुख रहे, तो भी सस्ती जान”
विश्नोई समाज के उद्धरण का ज़िक्र करते हुए कहा गया—
“पेड़ बचाना है तो चाहे सिर कटे, लेकिन पेड़ को बचाना जरूरी है।”
तेलंगाना में जिस तरह से जंगल काटे जा रहे हैं, वह सीधे तौर पर पर्यावरणीय विनाश की ओर संकेत करता है।

सुप्रीम कोर्ट ने लगाई अस्थायी रोक, प्रदर्शनकारियों ने जताया आभार
प्रदर्शनकारियों ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा तेलंगाना में पेड़ों की कटाई पर अस्थायी रोक लगाने के फैसले का स्वागत किया और उम्मीद जताई कि न्यायपालिका आगे भी इस तरह के मामलों में जनहित को प्राथमिकता देती रहेगी।
महिलाओं ने भी बढ़-चढ़कर लिया हिस्सा
प्रदर्शन में महिला शक्ति भी पीछे नहीं रही। उन्होंने कहा कि—
“हम इस शांतिपूर्ण आंदोलन के माध्यम से सरकार तक अपना संदेश पहुंचा रहे हैं कि हमें हमारे जंगल, हमारे जीव, हमारी प्रकृति चाहिए। ये विकास नहीं, विनाश है।”
मांगे क्या हैं?
प्रदर्शनकारियों ने सरकार के समक्ष निम्नलिखित मांगे रखीं:
- 400 एकड़ वन भूमि की कटाई तुरंत रोकी जाए।
- कटे हुए वनों की पुनर्स्थापना की जाए।
- वन्य जीवों के संरक्षण हेतु सख्त कानून बनाए जाएं।
- सभी विकास योजनाओं में पर्यावरणीय अध्ययन को अनिवार्य किया जाए।
- स्थानीय लोगों की भागीदारी के बिना कोई परियोजना न चलाई जाए।
निष्कर्ष: प्रकृति बचेगी, तो इंसान बचेगा
प्रदर्शन का सार यही था कि जब तक हम प्रकृति, पेड़-पौधे और जीव-जंतु को नहीं बचाएंगे, तब तक मानव जाति का अस्तित्व भी खतरे में बना रहेगा। सरकार चाहे किसी भी दल की हो, प्रकृति के साथ समझौता नहीं किया जा सकता।
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