प्राकृतिक धरोहर की रक्षा के लिए किसानों का संघर्ष
बीकानेर ज़िले के नोखा दया गांव के पास स्थित खेजड़ला रोही की खेजड़ियों को बचाने के लिए स्थानीय किसानों ने एक मिसाल कायम की है। यहां सोलर प्लांट निर्माण के लिए कंपनियों ने करोड़ों रुपये की पेशकश की, लेकिन गांव के किसानों ने अपने पूर्वजों की विरासत और पर्यावरण की रक्षा को अधिक प्राथमिकता देते हुए इसे ठुकरा दिया।

40 बीघा खेत नहीं बेचा, बनी है पूरे संघर्ष की ‘नाक’
गौरतलब है कि जहां 3000 बीघा भूमि पहले ही कंपनी को बेची जा चुकी है, वहीं केवल 40 बीघा जमीन अब तक बची है। यह ज़मीन कानाराम गोदारा सहित छह भाइयों की है, जिन्होंने 12-13 करोड़ की पेशकश को भी ठुकरा दिया। इनका कहना है – “यह खेत हमारी मां जैसी है, इसे नहीं काट सकते।”
खेजड़ियों की कटाई के खिलाफ 263 दिन से अनवरत धरना
संघर्ष समिति के संयोजक रामगोपाल बिश्नोई के अनुसार, धरना लगातार 263 दिनों से जारी है। उन्होंने बताया कि सरकार और प्रशासन अब तक संवेदनशीलता नहीं दिखा रही है। इस दौरान लोगों ने न सिर्फ पेड़ों को बचाने का प्रण लिया, बल्कि उन धमकियों और रास्ता बंद करने जैसी हरकतों का भी डटकर विरोध किया।
“एक पेड़ की हत्या, दस बच्चों की हत्या के बराबर”
प्रदर्शन में शामिल एक किसान ने कहा –
“मत्स्य पुराण में लिखा है कि एक पेड़ की हत्या दस बच्चों की हत्या के समान है।”
यह भावनात्मक बयान इस आंदोलन की गंभीरता को दर्शाता है। स्थानीय लोगों ने पर्यावरण की पूजा करते हुए इसे बचाने की जिम्मेदारी खुद उठाई है।
कंपनी का प्रलोभन और किसानों की दृढ़ता
जहां एक ओर कंपनियां लाखों-करोड़ों का लालच दे रही हैं, वहीं दूसरी ओर किसान कह रहे हैं –
“पैसे तो हाथ का मैल हैं, आज हैं तो कल नहीं। लेकिन यह पेड़-पौधे, यह जमीन – सात पीढ़ियों की कमाई हैं।”
यह साफ दिखता है कि पैसे के मुकाबले किसानों की प्राथमिकता उनकी ज़मीन, प्रकृति और परंपरा है।
“धरती माता को बचाने की अंतिम लड़ाई”
धरना स्थल पर मौजूद विजय नोकड़ा ने झलको राजस्थान से बातचीत में कहा –
“यह लड़ाई सिर्फ पेड़-पौधों की नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों की है। अगर आज खेजड़ियां नहीं बचाई गईं, तो आगे कोई आंदोलन का मतलब नहीं बचेगा।”
उन्होंने समाज के हर वर्ग से अपील की कि वे इस आंदोलन में सहभागी बनें।

सिर्फ एक खेत बना है रक्षक – पूरे 3000 बीघा के बीच की नाक
इस आंदोलन में सबसे मार्मिक बात यह है कि पूरे क्षेत्र में जब अधिकांश जमीन कंपनियों को बेच दी गई है, तब भी यह 40 बीघा खेत आज पर्यावरण का अंतिम प्रहरी बना हुआ है। किसानों ने इसे सम्मान और आत्मा की तरह संजोकर रखा है।
झलको राजस्थान की अपील
Jhalko Rajasthan इस अद्भुत संघर्ष को सलाम करता है और सभी पाठकों से अपील करता है कि इस खबर को अधिक से अधिक साझा करें। जब तक ऐसे किसान हैं, तब तक धरती पर हरियाली और जीवन की उम्मीद बनी रहेगी।
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