बीकानेर, झलको राजस्थान
देशभर के तीर्थ स्थलों की पैदल यात्रा करने वाले बीकानेर निवासी पुरुषोत्तम उपाध्याय एक बार फिर चर्चा में हैं। इनकम टैक्स विभाग में टैक्स असिस्टेंट के पद पर कार्यरत उपाध्याय जी अब पाकिस्तान स्थित हिंगलाज माता शक्तिपीठ की यात्रा की तैयारी कर रहे हैं।

संतोष और भक्ति से भरा जीवन
पुरुषोत्तम उपाध्याय एक बेहद सादा जीवन जीते हैं। सरकारी नौकरी के बावजूद उन्होंने भौतिक सुख-सुविधाओं से दूरी बनाई हुई है। एक पुराने मकान में रहकर, ईमानदारी से अपनी सेवा दे रहे हैं। उनका कहना है, “संतोषी सदा सुखी।” उन्हें जीवन में किसी भव्यता की चाह नहीं है, बल्कि आत्मिक सुख ही उनके लिए सबसे बड़ी दौलत है।
पैदल यात्रा का जुनून
उपाध्याय जी अब तक 188 बार रामदेवरा की पैदल यात्रा कर चुके हैं। शुरू में उन्होंने सिर्फ खाने-पीने के उद्देश्य से यात्रा शुरू की, लेकिन धीरे-धीरे यह भक्ति में बदल गई। उन्होंने यह प्रण लिया कि जब तक मां उन्हें जीवन देगी, वे इसी तरह पैदल यात्रा करते रहेंगे। उनका विश्वास है कि उनकी नौकरी भी बाबा रामदेव की कृपा से लगी।
सिर्फ पानी पर निभाई यात्राएं
उनकी यात्राओं की सबसे अद्भुत बात यह है कि कई बार वे सिर्फ पानी पर निर्भर रहकर 200 किलोमीटर से अधिक की यात्रा कर चुके हैं। 25 बार उन्होंने ऐसा किया जब उन्होंने न अन्न खाया, न दूध पिया – सिर्फ पानी पीकर पूरी यात्रा की। उनका मानना है कि यह सब ईश्वर की कृपा और मन की शक्ति से संभव हुआ।
देशभर के प्रमुख धार्मिक स्थलों की यात्रा
- रामेश्वरम, कन्याकुमारी, तिरुपति, शिरडी, केदारनाथ, बद्रीनाथ, सोमनाथ, गिरनार, चामुंडा माता जैसे तीर्थों की यात्रा उन्होंने पैदल की है।
- वे अब तक भारत के लगभग सभी धार्मिक स्थलों की पैदल यात्रा कर चुके हैं, केवल जगन्नाथपुरी और गंगासागर रह गए हैं, जिनकी योजना अगले महीने की है।
- वे आठ बार द्वारका भी पैदल जा चुके हैं, और उनका संकल्प है कि जब तक प्रधानमंत्री मोदी जी के लिए 11 फेरी पूरी नहीं कर लेते, वे यह यात्रा जारी रखेंगे।
पाकिस्तान के लिए अगला कदम
अब उनकी अगली मंज़िल पाकिस्तान स्थित हिंगलाज माता शक्तिपीठ है। इसके लिए वे वीज़ा प्रक्रिया में जुटे हुए हैं और उम्मीद करते हैं कि मां का बुलावा जल्दी ही मिलेगा।
परिवार और सामाजिक सोच
जहां आज के दौर में अधिकांश लोग सरकारी नौकरी को ऐशो-आराम का जरिया मानते हैं, वहीं पुरुषोत्तम उपाध्याय अपनी सादगी और आस्था से समाज के लिए प्रेरणा बन चुके हैं। उनकी पत्नी भी इसी विचारधारा को अपनाती हैं और कहती हैं – “ठंडी रोटी खाओ, ठंडा पानी पियो, पर आत्मा जगी रहनी चाहिए।“
यह कहानी केवल एक सरकारी कर्मचारी की नहीं, बल्कि एक आस्थावान और साधक की है जो अपनी पूरी ज़िंदगी धर्म, ईमानदारी और सेवा को समर्पित कर चुका है।
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