झुंझुनू, राजस्थान: राजस्थान के झुंझुनू जिले में एक दिल दहलाने वाली घटना सामने आई है, जिसमें एक मां ने अपनी 17 दिन की मासूम बेटी की निर्मम हत्या कर दी। इस घटना ने न केवल क्षेत्र बल्कि पूरे समाज को झकझोर कर रख दिया है।

घटना का विवरण
यह दुखद घटना झुंझुनू जिले के नया बास क्षेत्र में रविवार सुबह हुई। पंकज सैनी की पत्नी निशा उर्फ आचिकी देवी पर अपनी नवजात बेटी सोनिया की हत्या का आरोप है। पंकज और उनके परिवार के सभी सदस्य खेत पर गए हुए थे, और घर में सिर्फ निशा, उनकी 2 साल की बेटी नाहीरा और 17 दिन की नवजात सोनिया मौजूद थीं।
मासूम सोनिया का लापता होना
रविवार सुबह करीब 9 बजे निशा ने अपने जेठ अनिल सैनी को फोन कर बताया कि सोनिया घर में नहीं मिल रही है। परिवार ने तुरंत घर और आस-पास में खोजबीन शुरू की। कई प्रयासों के बाद भी जब बच्ची नहीं मिली, तब घर के पानी के टैंक का ढक्कन हटाया गया। वहाँ का दृश्य देख सबके होश उड़ गए — मासूम सोनिया पानी के टैंक में मृत पाई गई।
पुलिस की जांच और निशा का इकबाल
पहले तो परिवार ने इसे दुर्घटना समझा, लेकिन पुलिस को घटनास्थल की स्थिति संदिग्ध लगी। घर के मुख्य दरवाजे की कुंडी बाहर से बंद थी और टैंक का ढक्कन भी बंद पाया गया। गहन पूछताछ के बाद निशा ने कबूल किया कि उसने खुद अपनी बेटी को टैंक में डालकर ढक्कन बंद कर दिया था। पूछताछ में निशा ने बताया कि उसे बेटे की चाह थी, और लगातार दूसरी बार बेटी होने से वह मानसिक रूप से परेशान थी।
समाज की प्रतिक्रिया
इस घटना के बाद समाज में आक्रोश का माहौल है। जहां एक ओर लोग निशा के निर्दयी कदम की आलोचना कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर कुछ लोग यह मान रहे हैं कि निशा पर परिवार या समाज का दबाव हो सकता है। बेटा-बेटी के भेदभाव पर आधारित यह घटना कई सवाल खड़े कर रही है।
क्या कहता है कानून?
पुलिस ने आरोपी निशा को गिरफ्तार कर लिया है और उस पर हत्या का मामला दर्ज किया गया है। डीएसपी वीरेंद्र कुमार ने बताया कि इस मामले की पूरी तरह से जांच की जा रही है और दोषी को कड़ी से कड़ी सजा दिलाई जाएगी।
बेटियों के प्रति समाज का दृष्टिकोण
आज भी समाज के कई हिस्सों में बेटियों को बोझ समझा जाता है। ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ जैसे अभियानों के बावजूद इस तरह की घटनाएं समाज को शर्मसार करती हैं। बेटियां आज हर क्षेत्र में अपना नाम कमा रही हैं, फिर भी समाज में बेटे और बेटियों में भेदभाव क्यों?
निष्कर्ष
झुंझुनू की यह घटना समाज के लिए एक चेतावनी है कि हमें अपने मानसिकता को बदलने की जरूरत है। बेटा-बेटी के भेदभाव को मिटाकर हमें बेटियों को भी बराबरी का हक देना चाहिए।
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