टांई का 3000 साल पुराना आश्रम बना विवाद का केंद्र
राजस्थान के चूरू जिले में स्थित टांई का प्राचीन आश्रम, जो करीब 3000 वर्ष पुराना माना जाता है, इन दिनों विवादों में घिरा हुआ है। नाथ संप्रदाय से जुड़े मननाथी पंथ के इस ऐतिहासिक स्थल पर महंत पद को लेकर भ्रम और असहमति का माहौल बना हुआ है।

नाथ समाज के संतों ने इस विवाद को लेकर खुलकर बयान दिया है और आरोप लगाया है कि आश्रम की परंपरा और व्यवस्था के विपरीत निर्णय लिए जा रहे हैं।
गुरु-शिष्य परंपरा का उल्लंघन: संतों की आपत्ति
संतों का कहना है कि नाथ संप्रदाय की स्पष्ट गुरु-शिष्य परंपरा रही है, जिसमें हर आश्रम का महंत अपने शिष्य को उत्तराधिकारी नियुक्त करता है। यदि कोई शिष्य उपलब्ध नहीं होता, तो पंच परमेश्वर (पांच संतों की समिति) मिलकर महंत का चुनाव करते हैं।
वायरल वीडियो पर नाराजगी
हाल ही में एक वीडियो वायरल हुआ जिसमें किसी संत द्वारा खुद को महंत नियुक्त करने का दावा किया गया। इस पर संतों ने आपत्ति जताते हुए कहा कि –
“नाथ संप्रदाय में किसी को भी अधिकार नहीं है कि वह स्वयं किसी को गद्दी पर बैठाए या हटाए। यह परंपरा के खिलाफ है।”
मननाथी पंथ की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
संतों ने बताया कि यह आश्रम गोरखनाथ जी के शिष्य मनानाथ जी द्वारा स्थापित किया गया था, और मन्नाथी पंथ की शुरुआत यहीं से हुई। यह पंथ नाथ संप्रदाय के 12 पंथों में से एक है।
32 धनी संगठन का उल्लेख
समय के साथ, इस पंथ में 32 धनी संतों का एक संगठन बना, जिसमें 8 मननाथी, 2 सतनाथ, 2 नटेश्वरी, 4 आईपंथी, और भरतरी वैरागियों सहित अन्य शामिल थे। मननाथी पंथ के आठ प्रमुख आश्रमों में टांई के अलावा थानमुठई, ददरेवा, शेरडिढाल, भूठिया, झुंझुनू, नावा आदि शामिल हैं।
महंत नियुक्ति पर सवाल: ओमनाथ जी का चयन विवादों में
संतों ने आरोप लगाया कि ओमनाथ जी को गांव के कुछ लोगों ने टफरेली (अस्थायी रूप से) आश्रम का महंत घोषित कर दिया, जबकि यह निर्णय ना तो साधु समाज, ना ही भक्तों द्वारा लिया गया और पंच परमेश्वर की प्रक्रिया को भी दरकिनार किया गया।
रतिनाथ जी महाराज के उत्तराधिकारी की स्थिति अस्पष्ट
बताया गया कि पूर्व महंत रतिनाथ जी महाराज के जो उत्तराधिकारी थे, वे रतिनाथ जी से छह महीने पहले ही शरीर त्याग कर चुके थे, जिस कारण स्थिति और अधिक जटिल हो गई।
चार करोड़ खर्च और आर्थिक पारदर्शिता पर आरोप
संतों ने एक और बड़ा आरोप यह लगाया कि आश्रम में चार करोड़ रुपये के खर्च का दावा किया गया है, जिसकी कोई स्पष्ट जानकारी या पारदर्शिता नहीं है।

“कोई बताए कि ये पैसा कहां से आया? किसने कहा कि चार करोड़ लगाओ? किस फैक्ट्री से पैसे आए?”
“हमारे साधुओं ने 1 लाख, 10 लाख, 5 लाख तक दान दिया, वह पैसा कहां गया?”
पारदर्शिता की मांग
संतों ने आश्रम के खर्चों की सार्वजनिक जांच और पारदर्शी अकाउंटिंग की मांग की है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि यदि पैसा लगाया गया है, तो इसकी प्रक्रिया, अनुमति और उद्देश्य सार्वजनिक होने चाहिए।
बंटिया आश्रम और अन्य शाखाओं का उल्लेख
विवाद की पृष्ठभूमि में बंटिया आश्रम और नाथ समाज की अन्य शाखाओं की भी चर्चा हुई। बताया गया कि बंटिया आश्रम की स्थापना 14वीं शताब्दी में हुई थी और वहां असंख्य संतों की समाधियां मौजूद हैं। इस परंपरा के अनुसार, हर शाखा का स्वतंत्र अस्तित्व होता है लेकिन सभी की जड़ें टांई आश्रम से जुड़ी होती हैं।
निष्कर्ष: स्पष्टता और संतुलन की आवश्यकता
इस विवाद से स्पष्ट होता है कि एक प्राचीन और पवित्र आश्रम में गुरु-शिष्य परंपरा की अनदेखी और प्रशासनिक असंतुलन ने नाथ समाज के भीतर भ्रम की स्थिति पैदा कर दी है। संत समाज ने यह मांग की है कि इस विवाद का समाधान संप्रदाय की मूल परंपराओं के अनुरूप और पारदर्शिता के साथ किया जाए।