सीकर, राजस्थान | 14 मई 2025
सीकर जिले में बिजली विभाग की लापरवाही के चलते दो ठेका कर्मचारियों की करंट लगने से मौत हो गई। यह हादसा उस वक्त हुआ जब दोनों युवक ट्रांसफार्मर पर कार्य कर रहे थे और अचानक चालू लाइन की चपेट में आ गए। इस दर्दनाक हादसे के बाद से परिजनों और स्थानीय लोगों में भारी आक्रोश है।

घटना के बाद मृतकों के शवों को सीकर एसके अस्पताल की मोर्चरी में रखा गया, जहां पहले से ही तीन अन्य शव मौजूद थे। मोर्चरी में फ्रीजर की कमी के चलते शवों को बर्फ में रखना पड़ा। यह दृश्य देखकर परिजनों और समाज के लोगों का गुस्सा फूट पड़ा। धरना स्थल पर मौजूद लोगों का कहना है कि डिपार्टमेंट की लापरवाही से लगातार गरीब और मेहनतकश मजदूरों की जान जा रही है, लेकिन जिम्मेदार अधिकारियों पर कोई कार्रवाई नहीं हो रही।
लापरवाही से गई जान:
हादसे में मारे गए युवकों में से एक लक्ष्मणगढ़ से था और दूसरा सैनी समाज से। दोनों ही बिजली विभाग के ठेके पर कार्यरत थे। प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक, एक युवक ट्रांसफार्मर पर डेढ़ घंटे तक झुलसकर लटका रहा और बिजली विभाग के कर्मचारी काफी देर से मौके पर पहुंचे।
परिजनों की मांगें:
शोकसंतप्त परिवारों का कहना है कि मृतक बेहद गरीब परिवार से थे और यही उनके घर के कमाने वाले सदस्य थे। मां-बाप की उम्मीदें इन्हीं पर टिकी थीं। परिजनों ने मांग की है कि
- दोषियों पर हत्या का मुकदमा दर्ज हो,
- बिजली विभाग की लापरवाही की जांच हो,
- मृतकों के परिवार को ₹25 लाख का मुआवजा दिया जाए,
- ठेकेदारी व्यवस्था पर पुनर्विचार हो।
प्रशासन की जवाबदेही पर सवाल:
धरना स्थल पर पहुंचे जनप्रतिनिधियों और सामाजिक संगठनों ने बिजली विभाग और प्रशासन पर गंभीर आरोप लगाए। उनका कहना है कि यह हादसा प्रशासन की बड़ी चूक और जवाबदेही की कमी का परिणाम है। एक वक्त ऐसा भी आया जब धरने के दौरान लोग शवों को लेकर सड़क जाम करने की तैयारी में थे। हालांकि, बाद में प्रशासन की तरफ से आश्वासन दिया गया कि मृतकों के परिवार को बीमा योजना के तहत ₹15 लाख और विभागीय सहायता के ₹5 लाख दिए जाएंगे।
मामले ने पकड़ा तूल:
मौके पर पहुंचे नेता और समाजसेवी घटना को लेकर बेहद भावुक दिखे। एक जनप्रतिनिधि ने कहा, “मेरे जीवन में इतना कष्टदायक दिन कभी नहीं देखा। पांच शव अस्पताल के बाहर पड़े हैं और प्रशासन सोया हुआ है। यह संवेदनहीनता की पराकाष्ठा है।”
निष्कर्ष:
इस हादसे ने बिजली विभाग की लापरवाही और सरकारी तंत्र की संवेदनहीनता को उजागर कर दिया है। जब तक जवाबदेही तय नहीं की जाती और पीड़ित परिवारों को न्याय नहीं मिलता, तब तक यह जनआक्रोश शांत नहीं होगा।
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