ट्रेन का सफर और राजनीति की राह
राजस्थान की राजनीति में एक महत्वपूर्ण नाम, डॉ. सतीश पूनिया, ने संघर्षों से भरी अपनी जिंदगी के कई अनसुने किस्से साझा किए। एक ट्रेन यात्रा के दौरान उन्होंने बताया कि कैसे रेलवे के सफर ने उनकी जिंदगी को नया मोड़ दिया।

“भारत में ट्रेन अपने आप में एक संस्कृति है। दिनभर में करोड़ों लोग ट्रेन में सफर करते हैं, और मैंने भी अपने कॉलेज के दिनों में यही किया,” पूनिया ने बताया।
ट्रेन में खड़े-खड़े बिताई रात
जयपुर से जोधपुर जाने के दौरान एक बार उन्हें टॉयलेट में 5 घंटे खड़े रहना पड़ा क्योंकि जनरल डिब्बे में बैठने की जगह नहीं थी। यह अनुभव उनके संघर्षों की एक झलक दिखाता है कि कैसे सीमित संसाधनों में भी उन्होंने आगे बढ़ने की ठानी।
संघर्ष भरा बचपन और परिवार की प्रेरणा
सतीश पूनिया का जन्म राजस्थान के चूरू जिले के छोटे से गाँव बेवड़ में हुआ था। उनके पिता स्वतंत्रता सेनानी थे और समाजसेवा में भी सक्रिय थे। वहीं, उनकी माता एक गृहिणी थीं।
पढ़ाई और करियर की शुरुआत
बचपन से ही पढ़ाई में रुचि रखने वाले पूनिया ने महाराजा कॉलेज, जयपुर से बीएससी और बाद में एलएलबी की पढ़ाई की। उनका सपना पहले फौजी अधिकारी बनने का था, फिर डॉक्टर बनने का, लेकिन अंत में उनकी राह राजनीति की ओर मुड़ गई।
राजनीति में कदम और पहली गिरफ्तारी
पढ़ाई के दौरान ही अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) से जुड़े और कई छात्र आंदोलनों में हिस्सा लिया। इसी दौरान राजीव गांधी के प्रधानमंत्री रहते हुए, एक विरोध प्रदर्शन के दौरान उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।
7 दिन की जेल यात्रा और परीक्षा का अनुभव
एक बार राजस्थान विश्वविद्यालय के छात्र आंदोलन के कारण उन्हें 7 दिन तक जेल में रहना पड़ा। जेल में रहते हुए उन्होंने परीक्षा भी दी। यह उनके जीवन का एक अलग अनुभव था। “पहले दिन डर लग रहा था, लेकिन बाद में माहौल थोड़ा सामान्य हो गया,” उन्होंने कहा।
दूरदर्शन पर कब्ज़ा और युवा मोर्चा
1992 तक ABVP में सक्रिय रहने के बाद, उन्होंने भारतीय जनता पार्टी (BJP) के युवा मोर्चा में काम करना शुरू किया।
500 KM की पदयात्रा
पूनिया ने 500 किलोमीटर की पदयात्रा भी की, जो सम्राट पृथ्वीराज चौहान के स्मारक से महाराजा सूरजमल के स्मारक, लोहागढ़ तक थी। यह यात्रा पर्यावरण संरक्षण, सामाजिक समरसता और युवा जागरूकता के लिए थी।

बचपन की यादें और खेलों से लगाव
बचपन में क्रिकेट के शौकीन पूनिया गली क्रिकेट खेलते थे और खुद के पैसे जोड़कर बैट और बॉल खरीदते थे। उन्हें साहित्य पढ़ने का भी शौक था, और उन्होंने मुंशी प्रेमचंद, शरदचंद्र, और स्वतंत्रता सेनानियों की जीवनी पढ़ी।
सामाजिक मूल्यों से मिली सीख
उनके ताऊजी समाज में पंचायतें करते थे और न्याय दिलाने में मदद करते थे। इससे उन्हें समाजसेवा की प्रेरणा मिली। उनका मानना है कि समाज के लिए काम करना ही असली राजनीति है।
निष्कर्ष
डॉ. सतीश पूनिया का जीवन संघर्षों और संघर्ष से मिली सफलता की कहानी है। उनका सफर गाँव की गलियों से लेकर राजनीति के बड़े मंच तक प्रेरणादायक है। उनके संघर्षों की यह कहानी हर युवा को प्रेरित करती है कि संघर्ष से घबराना नहीं, बल्कि उसे अपनी ताकत बनाना चाहिए।