जयपुर के खातिपुरा क्षेत्र में इन दिनों जनता का गुस्सा और पीड़ा सातवें आसमान पर है। जेडीए (जयपुर विकास प्राधिकरण) द्वारा की जा रही बुलडोज़र कार्रवाई ने आमजन की नींव तक हिला दी है। 200 साल पुराने मकानों, दुकानों और मंदिरों को अवैध निर्माण बताकर ढहाया जा रहा है। स्थानीय महिलाएँ आँसुओं के साथ न्याय की गुहार लगा रही हैं – “हमारे छोटे-छोटे बच्चे हैं, कमाई का कोई जरिया नहीं, अब कहाँ जाएँ?”

स्थानीय विधायक गोपाल शर्मा भी मौके पर मौजूद थे, पर लोग सवाल कर रहे हैं कि जब उन्होंने पहले आश्वासन दिया था कि एक भी मकान नहीं टूटने देंगे, तो फिर अब कार्रवाई क्यों हो रही है? एक महिला ने ग़ुस्से और दर्द में कहा – “मोदी जी को जवाब चाहिए, हम तीन दिन से रो रहे हैं, पर सुनने वाला कोई नहीं है।”
हाई कोर्ट ऑर्डर पर विवाद
जेडीए का दावा है कि यह कार्रवाई हाई कोर्ट के आदेशानुसार हो रही है। लेकिन स्थानीय लोगों और व्यापार मंडल का कहना है कि कोर्ट ऑर्डर को तोड़-मरोड़ कर पेश किया जा रहा है। एक व्यक्ति ने बताया – “211124 का ऑर्डर 291124 को अपास्त हो चुका है। उसमें साफ लिखा है कि जेडीए पहले सभी प्रभावितों को सुने और फिर कोई फैसला करे। पर यहां तो सीधे तोड़फोड़ की जा रही है।”
202 साल पुराने घर, 65 साल पुराने मंदिर भी नहीं बचे
मकानों के साथ-साथ कई मंदिर भी इस कार्रवाई की भेंट चढ़ गए। महिलाओं का आरोप है कि – “मंदिर को रातों-रात तोड़ा जा रहा है। जेडीए कहता है उठा के ले जाओ मंदिर, लेकिन कहाँ ले जाएँ? अजमेर रोड की मजार को तो नहीं तोड़ा गया, तो मंदिरों के साथ ऐसा भेदभाव क्यों?”
जनता की पीड़ा, राजनैतिक दांवपेच
पूरा मामला अब राज्यवर्धन सिंह राठौड़ बनाम गोपाल शर्मा के राजनीतिक संघर्ष से जोड़कर देखा जा रहा है। एक स्थानीय निवासी ने कहा – “यह सिर्फ एक सड़क चौड़ीकरण का मुद्दा नहीं, यह राजनीतिक बदले की कार्रवाई है। ट्रैफिक की असली समस्या तो कहीं और है, पर वहां कोई कार्रवाई नहीं हो रही।”
मुआवज़ा और पुनर्वास का कोई ज़िक्र नहीं
लोगों का कहना है कि उन्हें किसी भी प्रकार का मुआवज़ा नहीं मिला है। “जिनके घर टूट गए, उन्हें सरकार ने एक चवन्नी तक नहीं दी। जब विधायक खुद कह रहे हैं कि हाई कोर्ट ने सीधे तोड़ने का आदेश नहीं दिया, तो फिर यह अत्याचार क्यों?”
निष्कर्ष:
जयपुर का खातिपुरा क्षेत्र आज़ादी के बाद पहली बार ऐसी त्रासदी से गुज़र रहा है। जहां लोग अपने हक की लड़ाई लड़ते-लड़ते रोने पर मजबूर हैं, वहीं प्रशासन चुपचाप बुलडोज़र चलाता जा रहा है। अब देखना यह होगा कि न्याय की यह लड़ाई किस मोड़ पर जाकर थमती है।