राजस्थान की राजनीति में जब भी बगावत और दबंगई की बात होती है, तो एक नाम सबसे पहले सामने आता है— देवी सिंह भाटी। कभी सत्ता के करीब तो कभी सत्ता से बगावत करते हुए, उन्होंने अपने अंदाज से राजनीति को नई दिशा दी है।

मंत्री पद गंवाने से लेकर सत्ता में वापसी तक
देवी सिंह भाटी का राजनीतिक जीवन कई उतार-चढ़ावों से भरा रहा है। एक समय ऐसा भी आया जब उन्होंने एक आईएएस अधिकारी को थप्पड़ मारने की वजह से मंत्री पद से हाथ धोना पड़ा। लेकिन राजनीति में उनके कौशल का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि एक फोन कॉल पर ही वे दोबारा मंत्री पद पर काबिज हो गए।
राजनीति में दबंग अंदाज
उनकी दबंग छवि सिर्फ राजनेताओं तक सीमित नहीं रही, बल्कि प्रशासनिक अधिकारियों तक भी इसकी धमक रही है। तहसीलदार को धूप में लोगों को ‘मुर्गा’ बनाने का आदेश देना हो या किसी सामाजिक अन्याय के खिलाफ सदन में लगातार विरोध करना, भाटी ने हमेशा अपने अंदाज से राजनीति की है।
वसुंधरा राजे से टकराव और फिर समर्थन
भाटी ने कई बार वसुंधरा राजे सरकार के खिलाफ बगावत की और अपनी अलग पहचान बनाई। लेकिन राजनीति में कोई स्थायी दुश्मन नहीं होता, और समय के साथ उन्होंने फिर से वसुंधरा राजे का समर्थन भी किया।
जाट राजनीति और हनुमान बेनीवाल का समर्थन
राजस्थान में जाट राजनीति का एक अहम चेहरा बन चुके देवी सिंह भाटी ने हनुमान बेनीवाल जैसे युवा नेताओं का समर्थन किया। उन्होंने सामाजिक न्याय मंच के माध्यम से राजस्थान की राजनीति में बड़े बदलाव लाने की कोशिश की।
2003 में सामाजिक न्याय मंच का गठन
2003 में उन्होंने भाजपा से बगावत कर सामाजिक न्याय मंच की स्थापना की। हालांकि, यह पार्टी उस समय बड़ी सफलता नहीं पा सकी, लेकिन इसने राजस्थान की राजनीति में एक नई लहर जरूर पैदा कर दी।
भाजपा और धर्मेंद्र की जीत में अहम भूमिका
बीकानेर लोकसभा चुनाव में भाजपा ने फिल्म अभिनेता धर्मेंद्र को टिकट दिया था। शुरुआती दौर में धर्मेंद्र कमजोर दिख रहे थे, लेकिन जब देवी सिंह भाटी ने उनका समर्थन किया, तब चुनावी समीकरण पूरी तरह से बदल गए। भाजपा प्रत्याशियों की एक गुप्त बैठक में यह साफ हुआ कि जिसे भाटी का समर्थन मिला, वह जीता और जिसे नहीं मिला, वह हारा।
देवी सिंह भाटी का नाम ही काफी
राजस्थान में देवी सिंह भाटी का नाम ही राजनीति में एक ब्रांड बन चुका है। एक दिलचस्प घटना में, बीकानेर में एक व्यक्ति का ऊंट गुम हो गया और वह हनुमानगढ़ पहुंच गया। जब वहां के लोगों ने सुना कि ऊंट देवी सिंह भाटी का है, तो उन्होंने बिना जांच-पड़ताल किए उसे लौटा दिया। बाद में पता चला कि ऊंट के मालिक और राजनीतिक भाटी में सिर्फ नाम की समानता थी।