Jhalko Rajasthan डेस्क, नागौर:
राजस्थान की राजनीति एक बार फिर गर्मा गई है। नागौर में आयोजित हुए राजपूत सम्मेलन को लेकर हनुमान बेनीवाल ने जो तीखे बयान दिए, वह अब प्रदेश की राजनीति में एक नई बहस का मुद्दा बन चुके हैं। इस पूरे घटनाक्रम पर पूर्व आईएएस अधिकारी और सामाजिक कार्यकर्ता शीला शेखावत ने भी अपनी प्रतिक्रिया दी है, जो अब सोशल मीडिया से लेकर सियासी गलियारों तक चर्चा का विषय बनी हुई है।

हनुमान बेनीवाल का बयान – “जातिवाद की राजनीति ठीक नहीं”
राजस्थान के कद्दावर नेता और आरएलपी प्रमुख हनुमान बेनीवाल ने नागौर में हुए राजपूत सम्मेलन पर सवाल उठाते हुए कहा कि “राजनीति को जातिवादी सम्मेलन के मंच से नहीं चलाया जाना चाहिए।” उन्होंने यह भी कहा कि “अगर केवल जातियों के नाम पर रैलियां की जाएंगी, तो लोकतंत्र और सामाजिक समरसता को नुकसान पहुंचेगा।”
बेनीवाल के अनुसार, यह सम्मेलन केवल एक जाति विशेष को राजनीतिक रूप से संगठित करने की कोशिश थी, जो लोकतंत्र के सिद्धांतों के खिलाफ है। उन्होंने कहा कि “राजनीति जनसेवा का माध्यम है, न कि जातियों के बीच दीवारें खड़ी करने का।”
शीला शेखावत का पलटवार – “समाज को संगठित करना गलत कैसे?”
पूर्व आईएएस और सामाजिक कार्यकर्ता शीला शेखावत ने हनुमान बेनीवाल के बयानों पर तीखी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा कि “अगर कोई समाज अपने अधिकारों की बात करता है और संगठित होता है, तो उसमें गलत क्या है? यह लोकतंत्र का ही हिस्सा है कि हर वर्ग को अपनी बात कहने और एकजुट होने का अधिकार है।”
शेखावत ने यह भी कहा कि “राजपूत समाज लंबे समय से उपेक्षा का शिकार रहा है। जब कोई समाज अपने हक के लिए आगे आता है, तो उस पर राजनीति करने का आरोप लगाना बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है।”
नागौर सम्मेलन का उद्देश्य क्या था?
नागौर में आयोजित यह राजपूत सम्मेलन, प्रदेश के विभिन्न हिस्सों से आए समाज के प्रतिनिधियों की उपस्थिति में हुआ था। सम्मेलन का मुख्य उद्देश्य समाज को संगठित करना, शिक्षा और रोजगार के मुद्दों पर चर्चा करना और युवाओं को दिशा देना था। सम्मेलन में कई सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर खुलकर संवाद हुआ।
लेकिन राजनीतिक रंग उस समय गहरा हुआ जब मंच से कुछ नेताओं ने जातीय एकता को राजनीतिक ताकत में बदलने की अपील की।
राजनीतिक विश्लेषण – एक जाति, कई एजेंडे
राजस्थान की राजनीति में जाति हमेशा से एक महत्वपूर्ण फैक्टर रही है। चाहे गुर्जर आंदोलन हो या जाट आरक्षण की मांग, हर वर्ग ने अपनी राजनीतिक ताकत को दिखाया है। राजपूत सम्मेलन को भी इसी नजर से देखा जा रहा है।
विशेषज्ञों का मानना है कि 2028 के विधानसभा चुनावों से पहले यह सम्मेलन राजनीतिक दलों के लिए एक संकेत है कि अब समाज अपना नेतृत्व खुद तय करना चाहता है। ऐसे में हनुमान बेनीवाल जैसे नेताओं का विरोध और शीला शेखावत जैसे सामाजिक नेताओं का समर्थन, दोनों ही ध्रुवीकरण का संकेत दे रहे हैं।

जनता की प्रतिक्रिया – सोशल मीडिया पर दो धड़े
नागौर सम्मेलन के बाद हनुमान बेनीवाल और शीला शेखावत के बयानों को लेकर सोशल मीडिया पर भी बहस छिड़ गई है। एक वर्ग जहां बेनीवाल के बयान को समाज को जोड़ने वाला बता रहा है, वहीं दूसरा वर्ग उन्हें समाज विरोधी करार दे रहा है।
ट्विटर और फेसबुक पर हजारों पोस्ट इन दोनों नेताओं के समर्थन और विरोध में देखे जा सकते हैं। यह साफ है कि राजस्थान की राजनीति अब सोशल मीडिया के माध्यम से भी संचालित हो रही है।
निष्कर्ष – जाति, समाज और राजनीति का टकराव
नागौर में हुए राजपूत सम्मेलन ने राजस्थान की राजनीति को एक नई दिशा दे दी है। हनुमान बेनीवाल के बयानों से जहां सियासी हलचल तेज हो गई है, वहीं शीला शेखावत के प्रतिवाद ने यह स्पष्ट कर दिया है कि समाज अब चुप नहीं बैठेगा।
आगामी चुनावों में इस तरह के सम्मेलनों और बयानों की भूमिका कितनी निर्णायक होगी, यह तो वक्त बताएगा। लेकिन इतना तय है कि राजस्थान की राजनीति में अब समाज और नेताओं के बीच सीधी टक्कर देखने को मिल रही है।
- चूरू की जनता के प्यार पर बोले Rajendra Rathore, विरोधियों को दिया करारा जवाब
- शादी के 14 साल बाद बने थे जुड़वां बच्चों के पिता, हेलिकॉप्टर हादसे ने छीन ली जिंदगी
- जोधपुर से जयपुर तक गरमाया Resident Doctor विवाद, Nirmal Choudhary ने क्या कहा?
- बीकानेर में पीले पंजे की कार्रवाई पर NSUI अध्यक्ष रामनिवास कूकणा का विरोध प्रदर्शन
- बीकानेर में तांत्रिकों का खुला भंडाफोड़: झाड़-फूंक की आड़ में चल रहा था बड़ा खेल