महाराणा सांगा, जिन्हें कुछ लोग केवल एक क्षेत्रीय राजा मानते हैं, वास्तव में भारत सम्राट थे। उनकी शक्ति और नेतृत्व को हिंदुस्तान के 120 से अधिक राजाओं ने स्वीकार किया था। उनके ध्वज तले राजपूत और मुस्लिम शासक एकजुट हुए और विदेशी आक्रांताओं का मुकाबला किया।

क्या वास्तव में राजपूत शक्तियाँ बिखरी हुई थीं?
इतिहास के तथ्यों को नकारने वाले लोग कहते हैं कि राजपूत शक्तियाँ एक नहीं थीं, लेकिन यह एक गलत धारणा है। जब महाराणा सांगा के नेतृत्व में 120 से अधिक हिंदू और मुस्लिम शासक एक साथ आए, तो यह इस बात का प्रमाण है कि भारतीय उपमहाद्वीप में राष्ट्रभक्ति की भावना प्रबल थी।
महाराणा सांगा के नेतृत्व में संगठित राज्य
महाराणा सांगा को राजस्थान, गुजरात, मालवा, और दिल्ली के मुस्लिम शासकों का भी समर्थन प्राप्त था। उनमें प्रमुख नाम इस प्रकार हैं:
- आमेर के राजा पृथ्वीराज
- जोधपुर के राव गंगा
- बीकानेर के कुवंर कल्याण मल
- हाड़ौती के शासक राव सूरजमल
- डूंगरपुर के उदयसिंह जी
- गागरोन (झालावाड़) के शत्रुसेन
- दिल्ली के शासक इब्राहिम लोदी (जो राणा सांगा को कर देते थे)
- गुजरात के शासक मुजफ्फर शाह
- मालवा के शासक महमूद खिलजी
- मेवात के शासक हसन खान मेवाती
हसन खान मेवाती: हिंदुस्तान का सच्चा वीर
जब बाबर ने हसन खान मेवाती को पत्र भेजकर इस्लामिक एकता के नाम पर साथ देने को कहा, तो हसन खान ने राष्ट्रभक्ति को सर्वोपरि रखा। उन्होंने उत्तर दिया, “माना कि हम दोनों इस्लाम को मानने वाले हैं, लेकिन तुम मेरी मातृभूमि को लूटने आए हो। रणभूमि में पहला प्रहार मैं ही करूंगा।”
इतिहास गवाह है कि हसन खान मेवाती ने अपने 12,000 मुस्लिम सैनिकों के साथ खानवा के युद्ध में वीरगति प्राप्त की।
महाराणा सांगा की शत्रु के प्रति उदारता
महाराणा सांगा ने युद्ध में अपने शत्रु महमूद खिलजी को बंदी बनाया और तीन महीने तक बंदीगृह में रखा। लेकिन उनकी दयालुता इतनी थी कि महमूद खिलजी को सम्मानपूर्वक न केवल मुक्त किया, बल्कि उसका राज्य भी उसे वापस लौटा दिया और उसे अपना मित्र बना लिया। इसके बाद, महमूद खिलजी ने बाबर के खिलाफ युद्ध में महाराणा सांगा का समर्थन किया।
राजपूत और मुस्लिम योद्धाओं की एकता
इतिहास इस बात का गवाह है कि महाराणा सांगा के नेतृत्व में हिंदू और मुस्लिम शासक विदेशी ताकतों के खिलाफ एकजुट हुए। यह साबित करता है कि राजपूत शक्ति कभी बिखरी हुई नहीं थी। महाराणा सांगा भारत सम्राट थे, और उनके नेतृत्व में देश के सभी स्वाभिमानी राजा खड़े थे।
हमारी विरासत को सुरक्षित रखने की ज़रूरत
आज का समाज अपनी गौरवशाली विरासत को भूलता जा रहा है। महाराणा सांगा और अन्य वीर पुरुषों के बलिदान को याद रखने के लिए हमें:
- अपने घरों में उनकी तस्वीरें लगानी चाहिए।
- गांव और समाज स्तर पर उनकी जयंती मनानी चाहिए।
- युवा पीढ़ी को उनके इतिहास से अवगत कराना चाहिए।
ऐतिहासिक नायकों का अपमान कब तक सहेंगे?
आज के दौर में महाराणा प्रताप, सूरजमल हाड़ा, और अन्य वीर महापुरुषों का अपमान किया जाता है। लेकिन समाज अब जागरूक हो रहा है और इस अपमान के खिलाफ आवाज़ उठा रहा है। जब 100 अपमान सह लिए जाते हैं, तो समाज प्रतिक्रिया जरूर देता है।

निष्कर्ष
महाराणा सांगा सिर्फ एक शासक नहीं, बल्कि भारत की अखंडता और स्वाभिमान के प्रतीक थे। हमें उनकी विरासत को सहेजना होगा और देश की युवा पीढ़ी को उनके बलिदान से प्रेरित करना होगा।
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