जयपुर/बाड़मेर। चार साल पहले हुए कमलेश प्रजापत कथित फर्जी एनकाउंटर मामले में बड़ा मोड़ सामने आया है। 16 अप्रैल 2025 को विशेष सीबीआई अदालत ने इस मामले में बाड़मेर और पाली पुलिस के कुल 24 अधिकारियों के खिलाफ धारा 302 (हत्या) सहित संगीन धाराओं में मुकदमा दर्ज करने के आदेश जारी किए हैं। इन अधिकारियों में दो आईपीएस अधिकारी भी शामिल हैं।
कमलेश प्रजापत की मौत को 2021 में एक पुलिस एनकाउंटर बताया गया था। लेकिन अब कोर्ट द्वारा जारी आदेश में यह मामला एक पूर्व नियोजित हत्या बताया गया है। पूर्व राजस्व मंत्री हरीश चौधरी, उनके भाई मनीष चौधरी और तत्कालीन रेंज आईजी सहित अन्य पर षड्यंत्र रचने के आरोप लगाए गए हैं। कोर्ट ने इन प्रमुख नेताओं और अधिकारियों की भूमिका की पुनः जांच के आदेश दिए हैं और सीबीआई को दो महीने के भीतर रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया है।

क्या है पूरा मामला?
कमलेश प्रजापत, जो एक सामाजिक कार्यकर्ता और उभरते हुए राजनेता माने जा रहे थे, की मौत को पुलिस ने एक मुठभेड़ बताया था। लेकिन मुठभेड़ के अगले ही दिन सामने आए सीसीटीवी फुटेज ने पुलिस की कहानी पर सवाल खड़े कर दिए। वीडियो में कमलेश की गिरफ्तारी और हत्या की साजिश के कई संकेत दिखाई दिए।
स्थानीय लोगों और समाज के नेतृत्व में विरोध-प्रदर्शन शुरू हुआ, जो 37 दिन तक चला। इसके दबाव में आकर राजस्थान की तत्कालीन गहलोत सरकार ने सीबीआई जांच की सिफारिश की, जिसे केंद्र सरकार ने स्वीकृत किया।
सीबीआई पर भी उठे सवाल
हालांकि, जब सीबीआई ने जांच शुरू की, तो पीड़ित पक्ष ने आरोप लगाया कि सीबीआई ने गंभीरता से जांच नहीं की। मुख्य आरोपी हरीश चौधरी से पूछताछ तक नहीं की गई, न ही बयान सही तरीके से दर्ज किए गए। करीब 8-9 महीने की जांच के बाद सीबीआई ने क्लोजर रिपोर्ट दाखिल कर मामले को बंद कर दिया।
इस क्लोजर रिपोर्ट के खिलाफ पीड़ित परिवार ने अदालत में अपील की, जिस पर 16 अप्रैल 2025 को सुनवाई हुई और 21 अप्रैल को आदेश की कॉपी पीड़ित पक्ष को सौंपी गई।
कोर्ट के आदेश का असर
सीबीआई अदालत ने अपने आदेश में कहा कि बाड़मेर और पाली जिले के 24 पुलिस अधिकारियों पर हत्या और आपराधिक षड्यंत्र की धाराओं में मुकदमा दर्ज किया जाए। इसमें तत्कालीन बाड़मेर एसपी, पाली एसपी, डीवाईएसपी, रेंज आईजी सहित कई वरिष्ठ अधिकारी शामिल हैं। साथ ही कोर्ट ने हरीश चौधरी, उनके भाई और अन्य नेताओं की भूमिका की पुनः जांच का आदेश भी दिया है।
राजनीतिक रंजिश और रिफाइनरी टेंडर विवाद
पीड़ित पक्ष का आरोप है कि यह हत्या एक राजनीतिक साजिश थी। कमलेश प्रजापत रिफाइनरी से जुड़े टेंडर घोटाले में कई नेताओं की भूमिका पर सवाल उठा रहे थे। साथ ही, उनका बढ़ता राजनीतिक प्रभाव कुछ नेताओं को नागवार गुजर रहा था, जिससे यह षड्यंत्र रचा गया।
अब आगे क्या?
पीड़ित पक्ष ने साफ किया है कि जब तक अंतिम रूप से न्याय नहीं मिलेगा, आंदोलन जारी रहेगा। वे केंद्र सरकार से भी मुलाकात कर अपनी बात रखेंगे और जरूरत पड़ने पर सीबीआई की कार्यप्रणाली के खिलाफ भी मोर्चा खोलेंगे।

निष्कर्ष
कमलेश प्रजापत का मामला केवल एक व्यक्ति की हत्या नहीं, बल्कि सत्ता, पुलिस और प्रशासनिक तंत्र की मिलीभगत का गंभीर आरोप है। अदालत के इस आदेश से पीड़ित परिवार को न्याय की उम्मीद जगी है, लेकिन जांच की निष्पक्षता और पारदर्शिता अब भी एक बड़ा सवाल बनी हुई है।