धनुरी, झुंझुनू (राजस्थान) — भारत-पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव के बीच झुंझुनू जिले के धनुरी गांव में जबरदस्त देशभक्ति का माहौल देखने को मिला। इस गांव से लगभग 800 फौजी जुड़े हुए हैं—कुछ रिटायर्ड, कुछ ड्यूटी पर। इसी गांव में एक ऐसे बहादुर फौजी से मुलाकात हुई, जिन्होंने 1999 की कारगिल लड़ाई में हिस्सा लिया था और आठ गोलियां खाकर भी दुश्मनों को धूल चटाई।

“हम पैदा ही देश की सेवा के लिए हुए हैं”
पूर्व सैनिक इराज नबी ने बताया कि वे कारगिल युद्ध की पूरी शुरुआत से लेकर अंत तक मोर्चे पर डटे रहे। उन्होंने बताया,
“मैंने दो पाकिस्तानी सैनिकों को मारा और खुद को आठ गोलियां लगीं—तीन हाथ में, पांच पैर में। फिर भी आज अगर हुक्म मिले, तो वतन के लिए जान देने को तैयार हूं।”
इराज नबी कारगिल में टाइगर हिल पर लड़ते हुए पाकिस्तानी सैनिकों के शवों का अंतिम संस्कार भी कर चुके हैं।
“पाकिस्तान ने अपने जवानों की पहचान तक से इनकार कर दिया था, लेकिन इंसानियत के नाते मैंने उनकी जनाजे की नमाज़ पढ़ाई और सुपुर्द-ए-ख़ाक किया।”
“फौजी होना सिर्फ पेशा नहीं, एक क़सम है”
गांव के एक अन्य पूर्व सैनिक सूबेदार आमिन अली ने बताया कि उनकी पांच पीढ़ियाँ सेना में रही हैं। उनका बेटा अभी भी कारगिल के मोर्चे पर तैनात है।
“देश सबसे पहले है। नमक, नाम और निशान—इसी पर कुर्बान हैं। हमने पहले भी लड़ाइयां लड़ी हैं, आज भी तैयार हैं।”
युद्ध नहीं हो तो बेहतर, पर ज़रूरत पड़ी तो पीछे नहीं हटेंगे
सभी पूर्व सैनिकों का एक ही मत था कि युद्ध टाला जाना चाहिए क्योंकि यह दोनों देशों के लिए विनाशकारी होता है। लेकिन अगर दुश्मन देश हमला करता है, तो भारतीय सैनिक पीछे हटने वालों में से नहीं हैं।
“जब तक जज़्बा और जोश नहीं होता, लड़ाई नहीं जीती जाती।” – कैप्टन
धनुरी: वीरों की धरती
इस गांव से प्रथम विश्व युद्ध, द्वितीय विश्व युद्ध, 1962, 1965, 1971 और कारगिल युद्ध तक हर युद्ध में सैनिकों ने भाग लिया है। गांव ने कई शहीद दिए हैं और आज भी यहां के युवा सेना में जाने के लिए तत्पर हैं।
निष्कर्ष
जब देश की सीमाओं पर तनाव होता है, तब देशभक्तों की असली भावना सामने आती है। झुंझुनू का धनुरी गांव इसका बेहतरीन उदाहरण है—जहां देशभक्ति सिर्फ एक भावना नहीं, एक विरासत है।