Introduction
बीकानेर में एक व्यक्ति ने 100 साल पुराने रेडियो का संग्रह कर एक अद्भुत प्रदर्शनी लगाई है। इस प्रदर्शनी में विभिन्न युगों के रेडियो शामिल हैं, जो न केवल इतिहास की गवाह हैं, बल्कि एक दौर की सांस्कृतिक धरोहर भी प्रस्तुत करते हैं। बीकानेर के निवासी दिनेश माथुर ने इस कलेक्शन को अपनी ज़िंदगी का एक अहम हिस्सा बनाया है और इस प्रदर्शनी के माध्यम से वे पुराने रेडियो के महत्व को जनमानस तक पहुंचाना चाहते हैं।

रेडियो का महत्व और शुरुआत
बीते दशकों में रेडियो मनोरंजन और सूचना का प्रमुख साधन रहा है। आज के डिजिटल युग में जहां स्मार्टफोन और इंटरनेट ने सबकुछ बदल दिया है, वहीं रेडियो ने अपनी एक अलग पहचान बनाई थी। यह वह दौर था जब लोग रेडियो पर समाचार, संगीत और वार्तालाप कार्यक्रम सुनकर अपने दिन की शुरुआत करते थे। दिनेश माथुर की प्रदर्शनी में पुराने रेडियो दर्शकों को उस समय के रेडियो और उसकी ध्वनि की विशेषताओं से परिचित कराती है।
1929 का जापानी रेडियो: एक अमूल्य धरोहर
दिनेश माथुर के कलेक्शन में सबसे पुराना रेडियो 1929 का जापानी रेडियो है, जो अब 100 साल पुराना हो चुका है। यह रेडियो एक दुर्लभ उदाहरण है, जो उस समय के तकनीकी विकास और जापान की कारीगरी को दर्शाता है। उन्होंने बताया कि उन्होंने इसे जीवित रखने के लिए इसे नियमित रूप से मेंटेन किया है और इसे ‘शताब्दी वर्ष’ मनाने के लिए तैयार किया है।
रेडियो का शौक और जीवन यात्रा
दिनेश माथुर एक सरकारी कर्मचारी हैं, जो अब रिटायर हो चुके हैं। उनके पास रेडियो संग्रह करने का एक खास कारण है। उन्होंने कहा कि किसी ने उन्हें ताना मारा था कि वे रेडियो नहीं खरीद सकते, और इसी ताने ने उन्हें प्रेरित किया। इसके बाद उन्होंने अपने कलेक्शन की शुरुआत की और आज तक हजारों रेडियो इकट्ठा किए हैं। उनका मानना है कि यह पुराने रेडियो ना सिर्फ एक संग्रह है, बल्कि यह पुरानी भारतीय संस्कृति और तकनीक का भी एक अहम हिस्सा हैं।
प्रदर्शनी में शामिल रेडियो मॉडल
बीकानेर में आयोजित प्रदर्शनी में विभिन्न देशों से आए रेडियो मॉडल शामिल हैं। इनमें से कुछ महत्वपूर्ण रेडियो मॉडल निम्नलिखित हैं:
- हिज मास्टर वॉयस (1960 का मॉडल) – यह रेडियो लकड़ी की बॉडी में बना हुआ है और इसमें 6 बैंड्स हैं। इस रेडियो को उपयोग में लाने के लिए सुई का इस्तेमाल किया जाता है, और यह रेडियो आज भी कार्यशील है।
- नेशनल इको (1960 का इंग्लैंड का मॉडल) – यह एक मजबूत और बैकेलाइट बॉडी में बना है, जो उस समय के उच्चतम तकनीकी मानकों को दर्शाता है। इसका डिज़ाइन और ध्वनि गुणवत्ता आज भी लोगों को आकर्षित करती है।
- फिलिप्स (1953 का भारत में बना रेडियो) – यह रेडियो भारतीय तकनीक का एक बेहतरीन उदाहरण है और इसमें डबल स्पीकर होते हैं। इसका आवाज़ और ध्वनि गुणवत्ता पहले से कहीं अधिक उत्कृष्ट मानी जाती है।
- मर्फी (1950 का रेडियो) – यह यूके का रेडियो मॉडल है, जो आठ बैंड्स और उच्च गुणवत्ता की ध्वनि के साथ आता है। इसकी बॉडी में लकड़ी और बैकेलाइट का मिश्रण किया गया है, जो इसे और भी आकर्षक बनाता है।
युवा पीढ़ी के लिए संदेश
दिनेश माथुर का कहना है कि यह प्रदर्शनी सिर्फ एक शौक नहीं, बल्कि एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व की जिम्मेदारी है। वे चाहते हैं कि युवा पीढ़ी को रेडियो के महत्व और उसकी ध्वनि की विशेषताएं समझ में आएं। उनके अनुसार, आज के बच्चों को यह भी नहीं पता कि रेडियो क्या होता था। वे मोबाइल फोन और इंटरनेट पर ही अपना समय बिता रहे हैं, जबकि रेडियो में कुछ खास बात है, जो डिजिटल दुनिया में खो गई है।
निष्कर्ष
बीकानेर के दिनेश माथुर का यह प्रयास न केवल पुरानी रेडियो धरोहर को बचाने का है, बल्कि यह भी दिखाता है कि किसी शौक को जुनून में बदलकर उसे कैसे समाज के साथ साझा किया जा सकता है। यह प्रदर्शनी इस बात का प्रमाण है कि जब किसी चीज़ के प्रति सच्ची लगन होती है, तो वह न केवल एक व्यक्ति के जीवन में बदलाव लाती है, बल्कि समाज के लिए भी एक अमूल्य धरोहर बन जाती है।