बीकानेर। राजस्थान के बीकानेर स्थित राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र में इन दिनों एक खास नस्ल के गधों पर रिसर्च चल रही है। यह नस्ल है हलारी डंकी, जो मूल रूप से गुजरात की है और अब विलुप्ति की कगार पर पहुंच चुकी है। वैज्ञानिकों और पशुपालकों की संयुक्त कोशिशों से अब इस नस्ल की पहचान, संरक्षण और व्यवसायिक उपयोग को लेकर अहम कदम उठाए जा रहे हैं।

क्या है हलारी नस्ल की खासियत?
हलारी नस्ल के गधे मुख्य रूप से गुजरात के द्वारका और राजकोट क्षेत्रों में पाए जाते हैं। यह नस्ल अपने दूध की गुणवत्ता और शांत स्वभाव के लिए जानी जाती है। इनके दूध में रोग प्रतिरोधक क्षमता (इम्यूनिटी बूस्टिंग तत्व), संक्रमण से बचाने वाले गुण और अन्य पौष्टिक तत्व पाए जाते हैं। दक्षिण भारत में एक मान्यता भी है कि बच्चों को जन्म के बाद हलारी गधी का दूध देने से उन्हें बल और रोग प्रतिरोधक क्षमता मिलती है।
₹8000 लीटर तक बिकता है दूध
इस नस्ल के दूध की मांग इतनी अधिक है कि इसकी कीमत ₹5000 से ₹8000 प्रति लीटर तक पहुंच जाती है। हालांकि, यह कीमत सामान्य बाजार में नहीं, बल्कि शगुन और औषधीय प्रयोगों में दी जाती है। उदाहरण के तौर पर, दक्षिण भारत में एक चम्मच दूध के लिए लोग ₹51 या ₹101 तक देने को तैयार हो जाते हैं। इसके चलते हलारी नस्ल के गधे पालना अब केवल पारंपरिक उपयोग तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक लाभकारी व्यवसाय भी बनता जा रहा है।
गायब हो रही है नस्ल, रिसर्च से मिल रही नई जान
हलारी नस्ल की कुल संख्या अब केवल 511 रह गई है। कभी यह संख्या 200-300 तक गिर चुकी थी, लेकिन केंद्र और गुजरात के सहजीवन नामक एनजीओ के संयुक्त प्रयासों से अब इनकी संख्या में थोड़ी बढ़ोतरी हुई है। प्रत्येक गधे की चिपिंग की जा रही है ताकि उनकी सही पहचान बनी रहे और हर मादा गधी गर्भवती हो सके।
अनुसंधान केंद्र की भूमिका
बीकानेर का राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र इस नस्ल के पालन, आहार, देखरेख और व्यवसायिक उपयोग पर गहन रिसर्च कर रहा है। यहाँ पर हर गधे के लिए विशेष डाइट तैयार की जाती है, जिसमें दाना, चापड़, मिनरल मिक्स आदि शामिल होते हैं। साफ-सफाई, देखभाल और खाने के समय तक एक सख्त दिनचर्या बनाई गई है। हर बाड़े में मेल और फीमेल गधों को अलग-अलग रखा जाता है ताकि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से बेहतर अध्ययन किया जा सके।
फ्रेंच नस्ल भी मौजूद
यहां सिर्फ हलारी ही नहीं, फ्रांस नस्ल के गधे भी हैं, जो अपने बड़े शरीर और घोड़े जैसे स्वरूप के लिए पहचाने जाते हैं। इनका उपयोग भी अलग-अलग शोधों और उपयोगों में किया जा रहा है।
कॉस्मेटिक और मेडिकल इंडस्ट्री में बढ़ रही मांग
अनुसंधान केंद्र के विशेषज्ञों के अनुसार हलारी गधी के दूध से अब स्किन क्रीम, इम्युनिटी बूस्टर्स और अन्य कॉस्मेटिक उत्पाद भी तैयार किए जा रहे हैं। इसके दूध की उच्च गुणवत्ता को देखते हुए कई कंपनियां इस पर रिसर्च कर रही हैं और इससे जुड़े प्रोडक्ट्स की मार्केटिंग भी शुरू हो गई है।
बदलती सोच, नया व्यवसाय
पहले जहां गधों को केवल सामान ढोने वाले जानवर के रूप में देखा जाता था, वहीं अब यह नजरिया बदल रहा है। वैज्ञानिकों और किसानों दोनों को यह समझ आने लगा है कि हलारी नस्ल का संरक्षण न केवल जैव विविधता के लिए जरूरी है, बल्कि यह रोजगार और आय का नया साधन भी बन सकता है।
गधे की छवि सुधारने की जरूरत
रिपोर्ट में यह भी सामने आया कि गधों को अक्सर मजाक का पात्र बना दिया जाता है। लेकिन हकीकत यह है कि गधे एक शांत, सहनशील और उपयोगी जानवर हैं। इनकी सही देखभाल और उपयोग से किसानों को सीधा आर्थिक लाभ मिल सकता है। अब समय आ गया है कि हम गधों को भी पशुपालन की मुख्यधारा में शामिल करें।

निष्कर्ष
बीकानेर का राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र एक बड़ी और दूरदर्शी पहल कर रहा है, जिसके माध्यम से ना केवल हलारी नस्ल के गधों को बचाने की कोशिश की जा रही है, बल्कि उनके दूध के माध्यम से किसानों के लिए एक स्थायी आय का साधन भी तैयार किया जा रहा है। अब जरूरत है समाज में इन जानवरों को लेकर बनी धारणा को बदलने और इन्हें एक मूल्यवान संसाधन के रूप में अपनाने की।