बीकानेर की दुर्गा गहलोत: हौसले की मिसाल बीकानेर जिले के सुजानदेसर की रहने वाली दुर्गा गहलोत ने अपनी शारीरिक कमजोरी को कभी भी अपनी राह में रोड़ा नहीं बनने दिया। पैरालाइज होने के बावजूद, दुर्गा ने न केवल खेल के मैदान में बल्कि समाज में भी मिसाल कायम की है।

पैरालाइज से पैरलिंपिक्स तक का सफर दुर्गा बचपन से ही पैरालाइज से ग्रस्त हैं, जिससे उनकी एक टांग और एक हाथ पूरी तरह से काम नहीं करते। लेकिन उनके मजबूत इरादों ने उन्हें कभी हार मानने नहीं दी। कोच गजानन शर्मा के मार्गदर्शन में दुर्गा ने ‘क्लब थ्रो’ और ‘शॉट पुट’ में महारत हासिल की और नेशनल लेवल तक का सफर तय किया।
खेलो इंडिया में दूसरी बार चयन दुर्गा का खेलो इंडिया में दूसरी बार चयन हुआ है। पिछली बार चेन्नई में आयोजित खेलो इंडिया में दुर्गा ने दो सिल्वर मेडल जीते थे और इस बार दिल्ली में होने वाली प्रतियोगिता में उनका लक्ष्य गोल्ड मेडल पर है।
मेडलों की झड़ी और परिवार का समर्थन दुर्गा के पास गोल्ड और सिल्वर मेडल्स की भरमार है। परिवार का भरपूर समर्थन और छोटी बहन का साथ, जो हर वक्त उनके साथ रहती है, दुर्गा के सफर को और भी मजबूत बनाता है।
ओलंपिक का सपना और समाज को संदेश दुर्गा का सपना ओलंपिक में देश का नाम रोशन करना है। वे युवाओं को संदेश देती हैं कि शरीर दिव्यांग हो सकता है, लेकिन मन को कभी दिव्यांग नहीं होने देना चाहिए।
सोशल मीडिया पर एक्टिव और समाज की प्रेरणा दुर्गा सोशल मीडिया का कम इस्तेमाल करती हैं, लेकिन जब भी करती हैं, सकारात्मक संदेशों के साथ करती हैं। वे आज की युवा पीढ़ी से सोशल मीडिया का सही उपयोग करने की अपील करती हैं।
अंतिम शब्द दुर्गा गहलोत सिर्फ एक नाम नहीं, बल्कि हौसले और आत्मबल का प्रतीक हैं। उनकी कहानी समाज के हर उस व्यक्ति के लिए प्रेरणा है, जो किसी न किसी कमी को अपनी कमजोरी समझता है।