बीकानेर में अतिक्रमण हटाओ अभियान बना विवाद, पीड़ितों का फूटा गुस्सा
Jhalko Rajasthan | बीकानेर
बीकानेर शहर में प्रशासन द्वारा चलाए गए अतिक्रमण हटाओ अभियान के तहत कई घरों पर पीला पंजा चला, जिससे शहर के कई हिस्सों में तनावपूर्ण स्थिति बन गई। प्रशासन जहां इसे नियमों के तहत की गई कार्रवाई बता रहा है, वहीं स्थानीय निवासी इसे अन्यायपूर्ण और एकतरफा कार्रवाई बता रहे हैं।

अवैध निर्माण हटाने के नाम पर लोगों के आशियाने उजाड़ दिए गए, जिससे पीड़ितों की आंखों में आंसू और दिल में गहरा आक्रोश देखने को मिला।
कार्रवाई की शुरुआत: अचानक पहुंचा बुलडोजर दस्ता
प्रशासन की टीम ने पुलिस बल के साथ शहर के कुछ खास इलाकों में बिना पूर्व सूचना के ही कार्रवाई शुरू कर दी। कई घरों, दुकानों और छोटे-छोटे ढांचों को अवैध निर्माण बताते हुए गिरा दिया गया।
स्थानीय लोगों का आरोप है कि उन्हें न तो कोई लिखित सूचना दी गई, न ही कोई वैकल्पिक व्यवस्था की बात की गई। एक बुजुर्ग महिला का बयान था:
“हमने सारी जिंदगी की कमाई से यह घर बनाया था, अब हमारा कोई ठिकाना नहीं।”
प्रशासन का पक्ष: नियमों के तहत की गई कार्रवाई
प्रशासन का कहना है कि यह अभियान पहले से निर्धारित था और नगर विकास योजना के तहत किया जा रहा है। अधिकारियों के अनुसार, जिन घरों और दुकानों को गिराया गया है, वे सभी सरकारी ज़मीन पर अवैध कब्जे थे।
एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया:
“हमने पहले कई बार नोटिस दिए, लेकिन लोग खाली करने को तैयार नहीं हुए। कानून का पालन करवाना हमारी जिम्मेदारी है।”
पीड़ितों का आरोप: चयनात्मक कार्रवाई और राजनीतिक दबाव
जहां प्रशासन इसे नियमों की कार्रवाई बता रहा है, वहीं पीड़ितों और स्थानीय नेताओं का आरोप है कि यह अभियान चयनात्मक और पक्षपातपूर्ण था। कुछ लोगों ने दावा किया कि जिनके पास राजनीतिक पहुंच थी, उनके निर्माणों को नहीं छुआ गया, जबकि गरीब और निम्न वर्ग के लोगों पर कार्रवाई की गई।
एक स्थानीय समाजसेवी ने कहा:

“अगर अतिक्रमण हटाना ही मकसद था, तो सब पर एक जैसा नियम लागू होना चाहिए था। यहां तो राजनीति के तहत गरीबों को निशाना बनाया गया है।”
##现场 की स्थिति: आंसू, हंगामा और नाराज़गी
कार्रवाई के दौरान कई जगहों पर महिलाएं और बच्चे सड़क पर आकर रोने लगे, कुछ स्थानों पर प्रदर्शन और नारेबाजी भी हुई। पुलिस को हल्का बल प्रयोग भी करना पड़ा।
पीड़ितों ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि उनकी कोई नहीं सुन रहा। ना तो उनके पास अब रहने को घर है, और ना ही कोई मदद मिल रही है।
सामाजिक संगठन और नेताओं की प्रतिक्रिया
इस घटना के बाद कई सामाजिक संगठनों और विपक्षी नेताओं ने मौके पर पहुंचकर पीड़ितों से मुलाकात की और प्रशासन की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए।
Jhalko Rajasthan से बातचीत में एक पूर्व पार्षद ने कहा:
“शहर को व्यवस्थित करना जरूरी है, लेकिन यह तभी संभव है जब इंसानियत के साथ काम किया जाए। ऐसे अमानवीय तरीके से घर तोड़ना तानाशाही है।”
प्रशासनिक जवाबदेही और आगे की राह
अब सवाल उठता है कि क्या प्रशासन केवल कागज़ों की कार्रवाई दिखा रहा है या ज़मीनी सच्चाई भी देख रहा है? क्या पीड़ितों को मुआवज़ा मिलेगा? क्या कोई वैकल्पिक आवास योजना उनके लिए तैयार है?
इन सभी सवालों का जवाब फिलहाल प्रशासन के पास नहीं दिखता। अगर यही रवैया चलता रहा, तो आने वाले समय में जन असंतोष और ज्यादा बढ़ सकता है।
निष्कर्ष: जरूरत है न्याय और सहानुभूति की
Jhalko Rajasthan की इस ग्राउंड रिपोर्ट से यह स्पष्ट है कि बीकानेर में अतिक्रमण हटाने के नाम पर जो कुछ हुआ, उसने प्रशासन की कार्यशैली पर कई सवाल खड़े कर दिए हैं। कानून का पालन जरूरी है, लेकिन जनता के साथ सहानुभूति और न्याय भी उतना ही आवश्यक है।
अगर जनता का विश्वास टूटेगा, तो प्रशासनिक व्यवस्था पर भी प्रश्नचिह्न लगना स्वाभाविक है।
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