बीकानेर जिले में एक दिल दहला देने वाली घटना के बाद माहौल गर्म हो गया है। छह लोगों की मौत के बाद पीड़ित परिवारों को न्याय दिलाने के लिए संघर्ष समिति के नेतृत्व में बीकानेर बंद का आयोजन किया गया। 21 अप्रैल को शहर और आसपास के कस्बों में पूरी तरह से बंद रहा और अब 22 अप्रैल को विशाल प्रदर्शन और कलेक्टरेट का घेराव प्रस्तावित है।

क्यों हुआ बीकानेर बंद?
यह बंद उन छह लोगों की मौत को लेकर किया गया है जिनकी जान एक दर्दनाक हादसे में चली गई। संघर्ष समिति और स्थानीय लोग इस बात से नाराज हैं कि अब तक सरकार और प्रशासन की तरफ से कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है। लोगों का कहना है कि परिवार उजड़ गए हैं और सरकार केवल औपचारिकता निभा रही है।
शांतिपूर्ण बंद को मिला भारी समर्थन
धरने में बैठे लोगों का कहना है कि यह आंदोलन पूरी तरह से गांधीवादी और शांतिपूर्ण है। बीकानेर शहर के साथ-साथ नोखा, कोलायत, लूणकरणसर, नापासर, कालू जैसे कस्बों में भी व्यापारियों और स्थानीय नागरिकों ने स्वेच्छा से दुकानें बंद रखीं। व्यापार मंडल, समाजसेवी संस्थाएं और आमजन ने मिलकर इस बंद को सफल बनाया।
संघर्ष समिति की मांगें
धरने पर बैठे रामनिवास कुकणा और अन्य नेताओं ने बताया कि सरकार को निम्नलिखित मांगें माननी चाहिए:
- प्रत्येक मृतक परिवार को ₹50 लाख का मुआवजा
- परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी
- हादसे की उच्च स्तरीय जांच
- जिम्मेदार अधिकारियों पर कार्रवाई
प्रशासन और सरकार पर लापरवाही का आरोप
धरने में शामिल लोगों का कहना है कि प्रशासन और सरकार दोनों इस गंभीर मसले को लेकर बेहद उदासीन हैं। धरने पर बैठे रामनिवास ने बताया कि कलेक्टर और एसपी से कई घंटों तक बातचीत हुई, लेकिन कोई ठोस आश्वासन नहीं मिला। उन्होंने यह भी कहा कि सरकार के किसी भी प्रतिनिधि ने अब तक उनसे संपर्क नहीं किया है।
22 अप्रैल को कलेक्टरेट घेराव की चेतावनी
संघर्ष समिति ने घोषणा की है कि यदि सरकार ने मांगें नहीं मानी तो 22 अप्रैल को बीकानेर कलेक्टरेट का घेराव किया जाएगा। इस दौरान अनुमानित 10,000 से अधिक लोग प्रदर्शन में शामिल होंगे। विभिन्न समाजों, साधु-संतों और मुस्लिम समाज ने भी इस आंदोलन को समर्थन दिया है।
जनता का आक्रोश और सरकार से सवाल
धरने में शामिल लोगों ने कहा कि सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि वह पीड़ित परिवारों को न्याय दिलाए। एक वक्ता ने कहा, “हम किसान के बेटे हैं, हमारे पसीने की बूंदें मिट्टी में लगती हैं, और आज जब हमारे परिवार टूट गए हैं तो सरकार खामोश क्यों है?”
सोशल मीडिया से भी मिल रहा समर्थन
इस आंदोलन को सोशल मीडिया पर भी काफी समर्थन मिल रहा है। लोग वीडियो और पोस्ट शेयर कर प्रशासन से जवाब मांग रहे हैं। एक 10 साल के बच्चे पारस की आंखों से बहते आंसुओं का वीडियो वायरल हो चुका है, जिसने पूरे प्रदेश को भावुक कर दिया।
निष्कर्ष
बीकानेर बंद एक सामान्य बंद नहीं था, यह उस दर्द और पीड़ा की अभिव्यक्ति है जिसे एक हादसे ने जन्म दिया। जनता अब सड़कों पर है और सरकार से जवाब मांग रही है। यदि समय रहते कदम नहीं उठाए गए, तो आंदोलन और भी उग्र हो सकता है।

संघर्ष समिति ने साफ कह दिया है कि अब आर-पार की लड़ाई होगी। यह आंदोलन अब केवल बीकानेर की सीमाओं तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि राजस्थान भर में इसकी गूंज सुनाई देगी।
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