बाड़मेर:- भारत और पूरी दुनिया में भगवान श्री कृष्ण को मानने वाले लोग हैं और कृष्ण जन्माष्टमी के दिन वे अपने प्रिय कान्हा की पूरे दिल से पूजा करते हैं और उनका जन्मोत्सव मनाते हैं। पश्चिमी राजस्थान के बाड़मेर में रहने वाले कृष्ण भक्तों को इस जन्माष्ठमी पर कुछ खास मिलने वाला है। कृष्णजन्माष्टमी के मौके पर बाड़मेर में एक अनोखा आयोजन किया गया है, जहां 25 किलो चांदी का इस्तेमाल कर कृष्ण के जीवन का चित्रण किया गया है.
यह चित्रण वृन्दावन की तर्ज पर बनाया गया है और पहली बार बाड़मेर में लगाया गया है. यह चित्रण कृष्ण के जीवन के विभिन्न पहलुओं को दर्शाता है, जैसे उनका जन्म, बचपन, गोपियों के साथ खेलना और महाभारत युद्ध में उनकी भूमिका आदि।
25 किलो चांदी से बनी उत्कृष्ट कृति
इस कृष्ण जन्माष्टमी पर बाड़मेर जिला मुख्यालय पर लोगों को कोलीवाड़ा के कारीगरों द्वारा तैयार की गई अनूठी कलाकृति देखने को मिलेगी. 25 किलो शुद्ध चांदी से बनी 25 लाख रुपये की लागत से बनी इस कलाकृति में भगवान श्रीकृष्ण के जीवन की विभिन्न चमत्कारी घटनाएं, उनकी शिक्षाएं और जीवन चरित्र देखने को मिलेंगे।
मुकुंद सत्संग समिति, बाड़मेर के कोषाध्यक्ष सुरेश माहेश्वरी ने लोकल 18 को बताया कि बाड़मेर का श्री मुकुंद जी मंदिर बहुत ही प्राचीन मंदिरों में से एक है, जहां साल भर भक्तों का तांता लगा रहता है. वहीं कृष्ण जन्माष्टमी के लिए इनकी संख्या हजारों में पहुंच जाती है। हर साल कान्हा के जन्मदिन पर सुबह से ही तरह-तरह के आयोजन शुरू हो जाते हैं और देर रात तक चलते रहते हैं।
60 साल पुराने इस मंदिर में श्री कृष्ण का जीवंत चित्रण है।
इस बार समिति ने जन्माष्टमी पर कुछ खास बनाया है, जिसका काम 3 महीने में पूरा हो गया है. 60 साल पुराने इस मंदिर में भगवान श्री कृष्ण के जीवन चरित्र को चांदी पर चित्रित किया गया है। इसके लिए पहले लकड़ी पर डिजाइन बनाया जाता था और फिर चांदी के अक्षर लगाए जाते थे। 25 किलो चांदी का उपयोग करके कृष्ण के जीवन का चित्रण किया गया है, जिसकी कीमत 25 लाख रुपये है। इसे कोलीवाड़ा के मशहूर कारीगरों ने तैयार किया है.
कोलीवाड़ा गाँव इस कारीगरी के लिए प्रसिद्ध है
आपको बता दें कि सिरोही जिले के सुमेरपुर शहर से सटा एक छोटा सा गांव कोलीवाड़ा इस तरह के काम के लिए मशहूर है. इस गांव में रहने वाले जांगिड़ समुदाय के कारीगरों द्वारा बनाए गए रथ और मंदिर हजारों किलोमीटर दूर देश के बड़े शहरों के साथ-साथ सात समंदर पार विदेशों तक जाते हैं। देश की आजादी से पहले जांगिड़ समुदाय के पूर्वजों द्वारा छोड़ी गई विरासत को अब यहां की युवा ब्रिगेड संभाल रही है. कोलीवाड़ा स्थित उनकी फैक्ट्री में एक साल में करीब 10-15 सोने के रथ बनाए जाते हैं।
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यहां के काम की डिमांड सात समंदर पार तक है।
देश के किसी भी हिस्से में होने वाले बड़े धार्मिक कार्यक्रमों में यहां से निर्मित रथों का ही उपयोग किया जाता है। यहां दिल्ली, पालिताना, गिरनार, सम्मेत शिखर, शंखेश्वर, नाकोड़ा, मालेगांव, सूरत, अहमदाबाद और मुंबई समेत अन्य राज्यों से विशेष रूप से प्रशिक्षित कारीगर बुलाए जाते हैं। ये सोने की नक्काशी रथ को आकर्षक लुक देती है। दिल्ली समेत दक्षिण भारत से भी ऑर्डर आते हैं। इन कारीगरों की कारीगरी अब बाड़मेर में दिखेगी.
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FIRST PUBLISHED : August 26, 2024, 16:09 IST
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