पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने एक जनसभा में भारतीय जनता पार्टी (BJP) और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की विचारधारा और नीतियों पर तीखा हमला बोला। उन्होंने ईआरसीपी (Eastern Rajasthan Canal Project) से जुड़े नए एग्रीमेंट को “बकवास” बताते हुए पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को भी आड़े हाथों लिया।

पीकेसी-ईआरसीपी पर सवाल, वसुंधरा को बताया राजनीतिक रूप से ‘बेबाक’ बनने की जरूरत
गहलोत ने कहा कि अगर वसुंधरा राजे में राजनीतिक ईमानदारी है, तो उन्हें सार्वजनिक रूप से प्रेस कांफ्रेंस बुलाकर ईआरसीपी और नए पीकेसी समझौते की सच्चाई जनता के सामने रखनी चाहिए। उन्होंने आरोप लगाया कि वसुंधरा केवल झालावाड़ की बात करती हैं जबकि पूरा प्रदेश इस योजना से प्रभावित होता है।
“नाम ही इतना उलझा हुआ है – पीकेयू, पीकेसी, ईआरसीपी – कि जुबान पर नहीं चढ़ता। क्योंकि नाम में दम नहीं है।”
बीजेपी-आरएसएस पर छुआछूत फैलाने का आरोप
गहलोत ने मंदिरों में गंगाजल से सफाई जैसे मामलों का हवाला देते हुए आरोप लगाया कि बीजेपी और आरएसएस की मानसिकता में छुआछूत और भेदभाव भरा हुआ है। उन्होंने इसे मानवता पर कलंक करार दिया और कहा कि यह 21वीं सदी में भी समाप्त नहीं हो पाया है।
“अगर आरएसएस सच में मानता है कि दलित, आदिवासी और पिछड़े हिंदू हैं, तो उसे खुद आगे आकर छुआछूत मिटाने की मुहिम छेड़नी चाहिए।”
सावित्रीबाई और ज्योतिबा फुले को बताया प्रेरणा स्रोत
गहलोत ने भाषण में सावित्रीबाई फुले और महात्मा ज्योतिबा फुले के संघर्षों को भी याद किया। उन्होंने कहा कि जब महिलाएं पढ़ भी नहीं सकती थीं, उस दौर में सावित्रीबाई ने स्कूल खोला और सामाजिक विरोध का सामना किया।
“आज भी उनकी सोच की आवश्यकता है। उन्होंने सामाजिक सुरक्षा के लिए प्रेरणा दी, जिसकी आज के भारत में भी जरूरत है।”
भगोड़े अपराधियों पर सरकार की नीयत पर सवाल
गहलोत ने भगोड़े अपराधियों की वापसी पर भी केंद्र सरकार को घेरा। उन्होंने कहा कि देशद्रोहियों और आर्थिक अपराधियों को भारत लाने में सरकार की नीयत साफ नहीं दिख रही है। उन्होंने यह भी पूछा कि जब राणा जैसे अपराधी को लाया जा सकता है, तो अन्य भगोड़े क्यों नहीं?
“क्या कोई मिलीभगत है? क्यों नहीं कार्रवाई होती? 14 साल हो गए प्रधानमंत्री बने हुए, अब तो जवाब देना चाहिए।”
प्रेस, साहित्य और विपक्ष को देशद्रोही बताना फासीवादी सोच
पूर्व मुख्यमंत्री ने देश के मौजूदा हालात पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि आज के दौर में जो भी सरकार के खिलाफ बोलता है, उसे देशद्रोही करार दे दिया जाता है – चाहे वह पत्रकार हो, साहित्यकार हो या विपक्षी नेता।
“यह लोकतंत्र विरोधी सोच है, यह फासीवादी मानसिकता है। कांग्रेस ही एकमात्र पार्टी है जो इस सोच का सामना कर सकती है।”
कांग्रेस की रणनीति पर भरोसा जताया
गहलोत ने राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे द्वारा शुरू की गई नई संगठनात्मक संरचना को लेकर उम्मीद जताई कि इसका असर ज़मीनी स्तर पर दिखेगा। उन्होंने कांग्रेस को मज़बूत बनाने की अपील की और कहा कि आने वाले समय में जनता इसका समर्थन करेगी।
“नीचे से ऊपर तक जो नई टीम तैयार हो रही है – बूथ स्तर से लेकर ज़िला स्तर तक – इसका असर ज़रूर दिखेगा।”
निष्कर्ष: राजनीतिक ईमानदारी और सामाजिक समरसता की मांग
अशोक गहलोत का यह भाषण न केवल राजनीतिक बयानबाजी था, बल्कि सामाजिक चेतना को जागृत करने का प्रयास भी था। उन्होंने छुआछूत, आरएसएस की भूमिका, सरकार की नीतियों और कांग्रेस की दिशा को लेकर कई गंभीर बातें कही, जो आने वाले समय में राजनीतिक चर्चा का केंद्र बन सकती हैं।