Jhalko Rajasthan | पाली, राजस्थान
पाली जिले की सुमेरपुर तहसील के सांडेराव गांव में स्थित है एक ऐतिहासिक गढ़, जिसका गहरा संबंध मेवाड़ के शौर्य और संस्कृति से जुड़ा है। यह गढ़ केवल एक स्थापत्य धरोहर नहीं बल्कि इतिहास की जीवंत गवाही भी है। कहा जाता है कि इस गढ़ के संस्थापक शारदुल सिंह जी थे, जो महाराणा प्रताप के छोटे भाई थे।
सांडेराव ठिकाने की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

सांडेराव का यह ठिकाना सिसोदिया वंश के राणावतों का प्रमुख ठिकाना रहा है। यह ठिकाना महाराणा उदय सिंह जी के सबसे छोटे पुत्र शारदुल सिंह जी द्वारा स्थापित किया गया था। शारदुल सिंह हल्दीघाटी युद्ध के समय उदयपुर से सांडेराव आए थे, लेकिन युद्ध के एक-दो वर्षों के भीतर ही वीरगति को प्राप्त हुए।
इस ठिकाने के अंतर्गत कुल 12 गांव आते थे, जिनमें खिमाड़ा, बांगड़ी, दुजाना प्रमुख हैं। यहां 1947 तक राजस्व व्यवस्था, सुरक्षा और न्याय प्रणाली स्थानीय स्तर पर ही चलाई जाती थी।
गढ़ का स्थापत्य और विशेषताएं
इस ऐतिहासिक गढ़ को स्थानीय भाषा में ‘रावला’ कहा जाता है, जैसा कि शेखावाटी क्षेत्र में प्रचलित है। मुख्य रावले की इमारत लगभग 600 वर्ष पुरानी है, जिसे चौहान राजपूतों ने बनवाया था। गढ़ में कुल 5 विंग्स हैं, जिनमें 150 से अधिक कमरे हैं।
गढ़ में शामिल सुविधाएं:
- तीन मंदिर – महादेव जी, ठाकुर जी (कृष्ण भगवान) और चामुंडा माता के।
- तीन गैराज – जिनमें आज भी एक 1936 मॉडल की फोर्ड कार मौजूद है।
- पुरानी जेल – छोटे अपराधों के लिए यहीं सजा दी जाती थी।
- जुडिशियल पॉवर – गढ़ को अंग्रेजों द्वारा न्यायिक अधिकार भी प्राप्त थे।
1936 की फोर्ड कार: ठाठ और तकनीक का प्रतीक
इस ठिकाने के पूर्व ठाकुर साहब सज्जन सिंह जी के तीन बेटों के लिए 1936 में तीन Ford 68 मॉडल कारें मंगवाई गई थीं। इनमें से एक कार आज भी इस गढ़ में सुरक्षित है। यह कार उस समय की लग्जरी गाड़ियों में गिनी जाती थी। आठ सिलेंडर की यह कार दो घंटे में जोधपुर तक का सफर तय कर सकती थी।
गढ़ का निर्माण और आयातित सामग्री
गढ़ का निर्माण कार्य 1898 में शुरू हुआ और करीब 15 वर्षों में पूर्ण हुआ। खास बात यह है कि गढ़ के कुछ हिस्से इंग्लैंड से आयातित स्टील और लोहे से बने हैं। ज़ूम करके देखने पर अब भी “Made in England” लिखा साफ दिखाई देता है।
निर्माण की अन्य विशेषताएं:
- मकराना का संगमरमर – झरोखों में उपयोग किया गया।
- नींव में पहाड़ी पत्थर – पास की पहाड़ियों से लाया गया।
- सीप और चूने का प्लास्टर – जिससे दीवारें मजबूत और ठंडी बनी रहीं।
जेल और न्याय प्रणाली का अनूठा उदाहरण
गढ़ के भीतर पुलिस थाना, जेल और न्यायालय की व्यवस्था थी। छोटे अपराधों की सुनवाई और सजा स्थानीय स्तर पर ही दी जाती थी। वहीं लंबे समय की सजा वाले अपराधियों को जालौर, बाली और जोधपुर की जेलों में भेजा जाता था।
शिक्षा और प्रशासन में अग्रणी परिवार
ठिकाने के दादा जी ठाकुर तगत सिंह जी 1930 में एलएलबी करने वाले राजस्थान के चुनिंदा व्यक्तियों में से थे। वे अंग्रेजों की न्यायिक प्रणाली को समझते थे और ठिकाने की प्रशासनिक व्यवस्था को आधुनिकता के साथ संचालित करते थे।
विरासत का संरक्षण और वर्तमान स्थिति
आज भी इस गढ़ में राणावत वंश के वंशज निवास करते हैं और इसकी देखरेख करते हैं। भले ही समय बदल गया हो, लेकिन यह गढ़ आज भी राजस्थान की शौर्यगाथा, स्थापत्य कला और राजसी विरासत का जीवंत उदाहरण बना हुआ है।

निष्कर्ष
पाली जिले के सांडेराव का यह गढ़ इतिहास प्रेमियों, पर्यटकों और सांस्कृतिक शोधकर्ताओं के लिए किसी खजाने से कम नहीं है। महाराणा प्रताप के भाई द्वारा स्थापित यह ठिकाना न केवल राजस्थान की रियासती राजनीति का हिस्सा रहा है, बल्कि इसकी स्थापत्य शैली और विरासत आज भी लोगों को आकर्षित करती है।
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