बीकानेर की चर्चित दहेज हत्या केस में न्यायालय ने सुनाया सजा का फैसला
बीकानेर: राजस्थान के बीकानेर जिले में दहेज के लिए एक महिला की हत्या के मामले में 12 साल बाद अदालत ने फैसला सुनाया। वर्ष 2013 में हुई इस दिल दहला देने वाली घटना में मृतका के जेठ, सास और ससुर को दोषी करार देते हुए न्यायालय ने तीनों को कठोर कारावास और जुर्माने की सजा सुनाई है।

घटना का पूरा विवरण: खेत जाते समय हुई हत्या
यह मामला 2013 का है, जब एक महिला अपने जेठ और उसकी भांजी के साथ ऊंटगाड़ी से खेत की ओर जा रही थी। रास्ते में दहेज को लेकर विवाद हुआ और मृतका के जेठ ने ऊंटगाड़ी के ‘झालिया’ (लकड़ी के फ्रेम) से उसके सिर पर घातक वार किया। गंभीर चोट लगने के कारण महिला की मौत हो गई।
हत्या के बाद आरोपी पक्ष ने कहानी रची कि ऊंटगाड़ी पलट गई थी और महिला उसकी चपेट में आकर मर गई। गांववालों और राजनीतिक दबाव के चलते यह झूठ फैला दिया गया कि यह एक दुर्घटना थी।
परिवार की आपबीती और संदेह की शुरुआत
मृतका के पिता जब बेटी का शव देखने पहुंचे, तो उन्होंने देखा कि शरीर पर केवल सिर पर ही चोट थी, बाकी शरीर पूरी तरह सुरक्षित था। इससे उन्हें शक हुआ और उन्होंने स्थानीय पुलिस थाने में दहेज हत्या की रिपोर्ट दर्ज कराई।
यह वही परिवार था जिसकी बड़ी बेटी की भी 6 महीने पहले “अननेचुरल” डिलीवरी से मौत हुई थी, जिससे परिवार पहले ही सदमे में था।
न्यायिक प्रक्रिया और फैसला
12 साल की लंबी कानूनी प्रक्रिया के बाद न्यायालय ने माना कि यह दुर्घटना नहीं, बल्कि सोची-समझी हत्या थी। अदालत ने धारा 498A (दहेज प्रताड़ना), धारा 406 (विश्वासघात), और धारा 302 (हत्या) सहित कई धाराओं में आरोपियों को दोषी ठहराया।
तीनों दोषियों – सास, ससुर और जेठ – को 3-3 साल की कठोर कैद और ₹2000 जुर्माने की सजा सुनाई गई।
अदालत ने क्या कहा?
न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा कि मृतका को शादी के बाद से लगातार दहेज के लिए प्रताड़ित किया गया और अंततः उसकी हत्या कर दी गई। अभियोजन पक्ष द्वारा प्रस्तुत सबूत और गवाहों की गवाही से यह स्पष्ट हो गया कि यह कोई दुर्घटना नहीं, बल्कि एक योजनाबद्ध हत्या थी।

परिवार की हालत और बच्चों का भविष्य
मृतका के दो छोटे बच्चे हैं, जिनकी कस्टडी अब उनके ननिहाल में है। यह परिवार आर्थिक रूप से बेहद कमजोर है और लगातार दो बेटियों को खोने का दर्द सह चुका है। परिवार ने न्याय मिलने पर संतोष जताया है, लेकिन साथ ही यह भी कहा कि यह न्याय बहुत देर से मिला।
2013 से 2025 तक – क्यों लगता है इतना समय?
वकील कौशल साखला के अनुसार, मुकदमों में देरी की एक बड़ी वजह न्यायिक प्रक्रिया की जटिलता और गवाहों की उपलब्धता होती है। गवाहों का ट्रांसफर, बयान में बदलाव, और प्रशासनिक देरी इसके मुख्य कारण हैं। हालांकि, अब कोर्ट 90 दिनों के भीतर चालान प्रस्तुत करने का निर्देश देती है, जिससे प्रक्रिया थोड़ी तेज हो रही है।
समाज में बढ़ते ऐसे मामलों पर चिंता
इस केस के माध्यम से यह साफ होता है कि ग्रामीण इलाकों में आज भी दहेज के लिए महिलाओं को प्रताड़ित किया जाता है। कई बार यह घटनाएं छुपा ली जाती हैं या दुर्घटना का रूप दे दिया जाता है। समाज को इन मुद्दों पर संवेदनशील और सतर्क रहने की आवश्यकता है।
निष्कर्ष: देर से सही, न्याय तो मिला
झलको राजस्थान की टीम की ओर से इस खबर को उजागर करने का उद्देश्य यही है कि समाज में छुपे ऐसे अपराधों को सामने लाया जाए और पीड़ितों को न्याय दिलाया जा सके। यह मामला भले ही 12 साल पुराना हो, लेकिन इसका फैसला यह सिखाता है कि न्याय भले देर से मिले, मिलता जरूर है।
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