राजस्थान की समृद्ध संस्कृति और परंपराओं का हिस्सा रही राजस्थानी भाषा को आधिकारिक मान्यता दिलाने के लिए कई वर्षों से प्रयास किए जा रहे हैं। इसी कड़ी में हनुमानगढ़ जिले के बहलोल नगर गांव में एक विशेष अभियान चलाया जा रहा है, जिसका उद्देश्य राजस्थानी भाषा को अधिक लोकप्रिय बनाना और इसे राजभाषा के रूप में मान्यता दिलवाना है।
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राजस्थानी भाषा के प्रति बढ़ती जागरूकता
बहलोल नगर में राजस्थानी भाषा को संरक्षित और प्रचारित करने के लिए स्थानीय लोगों ने अनूठे कदम उठाए हैं। यहां की दीवारों पर राजस्थानी भाषा में सुविचार और प्रेरणादायक संदेश लिखे गए हैं, ताकि नई पीढ़ी अपनी भाषा से जुड़ाव महसूस करे। यह पहल केवल बहलोल नगर तक ही सीमित नहीं है, बल्कि पूरे राजस्थान में इसे समर्थन मिल रहा है।
राजस्थानी भाषा का ऐतिहासिक महत्व
राजस्थानी भाषा का इतिहास गौरवशाली रहा है। यह भाषा महाराणा प्रताप, तेजाजी, पाबूजी जैसे वीरों की वीरगाथाओं को संजोए हुए है। इतिहासकारों के अनुसार, राजस्थानी में लिखे गए कई धार्मिक ग्रंथ और साहित्यिक कृतियाँ आज भी इसकी समृद्धि का प्रमाण हैं।
राजस्थानी भाषा के लिए चलाए जा रहे आंदोलन
बहलोल नगर के सामाजिक कार्यकर्ताओं और भाषा प्रेमियों ने एक अभियान शुरू किया है, जिसमें गांव के लोग और राजस्थान के विभिन्न शहरों के लोग बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं। यह आंदोलन केवल एक गांव या क्षेत्र तक सीमित नहीं है, बल्कि जयपुर, जोधपुर, बीकानेर, गंगानगर और सूरतगढ़ जैसे बड़े शहरों तक फैल रहा है।
सरकार से राजस्थानी को मान्यता देने की अपील
राजस्थानी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग लंबे समय से की जा रही है। भाषा प्रेमियों का कहना है कि अगर पंजाबी, गुजराती, मराठी जैसी भाषाओं को मान्यता मिल सकती है, तो राजस्थानी को क्यों नहीं? इस संबंध में कई बार सरकार को ज्ञापन भी सौंपे गए हैं और जागरूकता अभियान चलाए जा रहे हैं।
राजस्थानी भाषा और रोजगार के अवसर
अगर राजस्थानी भाषा को आधिकारिक मान्यता मिलती है, तो इससे युवाओं को रोजगार के नए अवसर मिल सकते हैं। स्कूलों और कॉलेजों में इसे विषय के रूप में शामिल किया जा सकता है, जिससे शिक्षकों, लेखकों और अनुवादकों के लिए नए द्वार खुलेंगे। साथ ही, इससे पर्यटन उद्योग को भी बढ़ावा मिलेगा, क्योंकि विदेशी पर्यटक राजस्थानी संस्कृति और भाषा को समझने में अधिक रुचि लेंगे।
संस्कृति संरक्षण में स्थानीय समुदायों की भूमिका
बहलोल नगर के स्थानीय लोग इस अभियान में बढ़-चढ़कर भाग ले रहे हैं। गांव में कई दुकानें और सार्वजनिक स्थानों पर राजस्थानी भाषा में बोर्ड और नामपट्ट लगाए गए हैं। लोगों का मानना है कि जब तक हम खुद अपनी भाषा को महत्व नहीं देंगे, तब तक सरकार भी इसे मान्यता देने में रुचि नहीं दिखाएगी।
नए दौर में राजस्थानी भाषा की स्वीकार्यता
आज के डिजिटल युग में भी राजस्थानी भाषा को बढ़ावा देने के लिए सोशल मीडिया, यूट्यूब और अन्य ऑनलाइन प्लेटफॉर्म का उपयोग किया जा रहा है। ‘झलको राजस्थान’ जैसे प्लेटफॉर्म इस दिशा में सराहनीय कार्य कर रहे हैं और युवा पीढ़ी को इस आंदोलन से जोड़ रहे हैं।
निष्कर्ष: अपनी भाषा को संरक्षित रखना समय की मांग
राजस्थानी भाषा न केवल हमारी सांस्कृतिक पहचान है, बल्कि हमारी धरोहर भी है। इसे संरक्षित और प्रचारित करना प्रत्येक राजस्थानवासी की जिम्मेदारी है। अगर हम अपनी भाषा को महत्व देंगे और इसके लिए संघर्ष करेंगे, तो एक दिन यह निश्चित रूप से राजभाषा का दर्जा प्राप्त करेगी। बहलोल नगर से उठी यह आवाज पूरे राजस्थान में गूंज रही है, और अब समय आ गया है कि हम सभी मिलकर इसे समर्थन दें।
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