जोधपुर:- Jhalko Rajasthan-जन-जन की आस्था के केंद्र भगवान गजानन के विशेष पर्व गणेश चतुर्थी पर चूरू के निकट तारागढ़ी धाम स्थित गणेश मंदिर में भगवान गजानन को 1151 किलो केसर मोदक का भोग लगाया गया. गणेश चतुर्थी पर तारागढ़ी धाम में भगवान गजानन के दर्शन के लिए सुबह से ही भक्तों की कतार लगी हुई है और मंदिर गणपति बाबा मोरया के जयकारों से गूंज रहा है.वर्षों पुराने इस ऐतिहासिक मंदिर में गणेश चतुर्थी पर श्रद्धालुओं की भीड़ को देखते हुए गणेश सेवा समिति की ओर से छाया व पानी की व्यवस्था की गयी है. सुरक्षा की दृष्टि से रतननगर व सदर थाने से बड़ी संख्या में पुलिसकर्मी तैनात किये गये थे.
गणेश सेवा समिति से जुड़े विजय पुनिया लोकल 18 को बताते हैं कि 1999 में समिति ने 51 किलो मोदक से शुरुआत की थी और आज भक्तों की श्रद्धा और आस्था को देखकर यहां जो भीड़ उमड़ती है वो अद्भुत है.पुनिया बताते हैं कि गणेश चतुर्थी पर भगवान गजानन को 1151 किलो सिंगल केसर मोदक का भोग लगाया गया. 16 हलवाईयों और गणेश सेवा समिति के सदस्यों की मदद से, इस विशाल एकल केसरिया मोदक को लगातार दो दिनों में तैयार किया गया और गणेश चतुर्थी पर आयोजित विशेष आरती में भगवान गजानन को अर्पित किया गया।
जोधपुर से जुड़ा ये किस्सा
तारागढ़ी धाम के महंत संजय गोस्वामी लोकल18 को बताते हैं कि तारागढ़ी का प्रसिद्ध गणेश मंदिर जोधपुर रियासत की राजकुमारी तारामणि ने बनवाया था. उन्हीं के नाम पर तारागढ़ी मंदिर का नाम रखा गया। लगभग 250 वर्ष पूर्व जोधपुर की राजकुमारी तारामणि तीर्थयात्रा पर निकली थीं।
इस दौरान जब वह रात्रि विश्राम के लिए गांव में रुकी तो रात में भगवान गणेश ने उसे दर्शन दिए और अपनी मूर्ति स्थापित करने को कहा। जब सुबह हुई तो राजकुमारी ने अपने सैनिकों को पास के गाँव श्यामपुरा में एक खाई खोदने का आदेश दिया और यह मूर्ति मिल गई।
बाद में राजकुमारी ने एक मंदिर बनवाकर इसकी स्थापना की। पहले इस मंदिर के रखरखाव का खर्च जोधपुर राज्य द्वारा वहन किया जाता था, बाद में बीकानेर ने इसका प्रबंधन अपने हाथ में ले लिया। यह देश का एकमात्र मंदिर है जिसमें भगवान गजानन दक्षिण दिशा की ओर मुख करके विराजमान हैं।
मंदिर में है तीन समाधियां
जमीन से 75 फीट की ऊंचाई पर स्थित इस प्राचीन गणेश मंदिर में तीन समाधियां हैं। गांव के सरपंच बलबीर ढाका का कहना है कि मंदिर के निर्माण के बाद राजकुमारी तारामणि, राजकुमार और घुड़सवार ने यहां जीवित समाधि ले ली थी, जो आज यहां आने वाले भक्तों की आस्था का केंद्र है।
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FIRST PUBLISHED : September 9, 2024
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